Wednesday, June 4, 2014

786 = ॐ


मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला अंक 786 क्या है...??? मुस्लिम तथा इस्लाम के पुरोधा 786 अंक को विस्मिल्लाह का रूप बताते हैं.... और, सीधे सीधे इस अंक को अपने अल्लाह से जोड़ते हैं...! परन्तु आप यह जान कर हैरान हो जायेंगे कि .... इस्लाम का 786 और कुछ नहीं .... बल्कि.... हम हिन्दुओं तथा विश्व का पहला एवं पवित्रम अक्षर ॐ है...! दरअसल ऐसा इसीलिए है कि....... मुस्लिमों द्वारा अपने अराध्य के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""अल्लाह"" भी..... हिन्दुओं के वेद से ही चुराया गया है.... और, जो ""अल्ला"" का अपभ्रंश रूप है..... जिसका अर्थ ""अम्बा, अक्का, अथवा शक्ति होता है"...! तो.... उन्होंने एक काल्पनिक अल्लाह बना लिया ..... और, वैदिक रीति के अनुसार ही दिन में 5 बार उनकी पूजा(आराधना) सुनिश्चित कर ली........ परन्तु , ""ओंकार"" के उच्चारण के बिना उन्हें अपने हर किये धरे पर पानी फिरता नजर आया..... क्योंकि उन्हें भी यह मालूम था कि.... ॐ ही साश्वत है..... और, अंतिम सत्य है...! अपनी इस्लाम की इस विसंगति को दूर करने लिए..... उन्हें भी ॐ सरीखा ही कोई ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर चाहिए था.... जो कि उन्हें नहीं मिला.... क्योंकि, पूरे ब्रह्माण्ड में ॐ एक ही है...! इसीलिए उन्होंने..... लाचार होकर हमारे ""अदभुत और सर्वशक्तिमान"" अक्षर ॐ को ही अपना लिया...... परन्तु, उन्होंने ॐ के तीनों भागों को थोडा दूर दूर लिखा (उल्टा कर लिखा .... क्योंकि, अरबी और इस्लाम में सब चीज उल्टा कर ही लिखा जाता है).... जिससे कि..... यह एक अंक ७८६ सरीखा दिखने लगा , जिसे उन्होंने जस के तस अपना लिया......! इस तरह ...... हम निर्विवाद रूप से यह साबित कर सकते हैं कि........ इस्लाम की पूजा (नमाज) पद्धति, उनका अल्लाह ..... यहाँ तक कि उनका पवित्रतम अंक 786 हमारे वेदों से ही चुरा कर बनाया गया है...... और, इस्लाम कोई नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं है...! इन सब बातों से..... एक महत्वपूर्ण बात यह भी साबित होती है कि..... इस पूरे ब्रह्माण्ड में हिन्दू सनातन धर्म के अलावा और किसी दूसरे धर्म अथवा संप्रदाय का कोई अस्तित्व नहीं है..... और, सारे के सारे धर्म तथा संप्रदाय ........ हमारे हिन्दू सनातन धर्म से चोरी कर..... अथवा, प्रेरणा लेकर तैयार किये गए हैं....! यही कारण है कि..... सारे दुनिया के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा ... लाख प्रयास करने के बावजूद भी..... आज तक कोई हमारे हिन्दू सनातन धर्म का बाल भी बांका नहीं कर पाया है..... और, हम आज भी दुनिया में ....... सबसे सम्मानित तथा आदरणीय धर्म की संज्ञा पाते हैं....! हमारा हिन्दू सनातन धर्म ही ..... ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ बना है..... और, यही.... अंत तक.... तथा , इसी गौरव के साथ विद्यमान रहेगा...! बाकी के सारे धर्म धर्म और संप्रदाय.... पानी के बुलबुले की तरह आए हैं..... और, उसी प्रकार विलुप्त भी हो जायेंगे...! इसीलिए..... गर्व करें कि हम सनातनी हैं ... और , सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं....! जय महाकाल...!!!

परमाणु बम का सच !!


आज देश में बहुत जोर-शोर से ये प्रचारित किया जा रहा है कि..... रक्षा क्षेत्र में विदेशी पूंजी को अनुमति देने से देश में नयी तकनीक आएगी ... फलाना आएगा , ढिमका आएगा ...! लेकिन... क्या आप जानते हैं कि...... आज के पाश्च्यात्य और तथाकथित रूप से आधुनिक कहे जाने वाले अंग्रेजों के पूर्वज जब जंगलों में नंग-धडंग घूमा करते थे..... और.... कंदराओं में रहा करते थे (मुहम्मद-फुहम्मद का तो उस समय जन्म भी नहीं हुआ था)....... उस समय भी हम हिन्दुस्तानी (हिन्दू) ..... परमाणु बम और हीट सीकिंग मिसाईल जैसे .... आधुनिकतम हथियार का प्रयोग किया करते थे...! दरअसल.... बात कुछ ऐसी है कि....... आधुनिक भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है, वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है.... और, उस से पूर्व के इतिहास को "प्रमाण-रहित" कह कर नकार दिया जाता है। स्थित तो यह है कि....हमारे "देशी अंग्रेजों" को यदि "सर जान मार्शल" प्रमाणित नहीं करते... तो, हमारे तथाकथित रूप से "बुद्धिजीवियों" को विश्वास ही नहीं होना था कि.... हडप्पा और मोहनजोदड़ो स्थल ईसा से लगभग 5000 वर्ष पूर्व के समय के हैं.... और, वहाँ पर ही ""विश्व की प्रथम सभ्यता ने जन्म लिया"" था। मोहनजोदड़ो ...सिन्धु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख नगर अवशेष है , जिसकी खोज 1922 ईस्वी मे "राखाल दास बनर्जी" ने की। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे "सक्खर जिले" में स्थित है....... और, सिन्धी भाषा में इसका अर्थ है - मृतको का टीला। विश्व की प्राचीनतम् सिन्धु घाटी एवं मोहनजोदड़ो सभ्यता के बारे में पाये गये उल्लेखों को सुलझाने के प्रयत्न अभी भी चल रहे हैं। जब पुरातत्वविदों ने पिछली शताब्दी में मोहनजोदडो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था ....तो, उन्हों ने देखा कि वहाँ की "गलियों में नर-कंकाल" पडे थे.... और, कई "अस्थि पिंजर चित अवस्था" में लेटे थे .......! साथ ही..... कई अस्थि पिंजरों ने एक दूसरे के हाथ इस तरह पकड रखा था .... मानो किसी भयानक विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुँचा दिया था। गौर करने लायक बात यह है कि.... उन नर कंकालों पर ठीक उसी प्रकार के ""रेडियो -ऐक्टीविटी के चिन्ह"" थे.... जिस तरह के चिन्ह ... जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर "एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गये" थे। मोहनजोदड़ो स्थल के अवशेषों पर ""नाईट्रिफिकेशन के जो चिन्ह"" पाये गये थे उस का कोई स्पष्ट कारण नहीं था क्यों कि ऐसी अवस्था """केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही""" हो सकती है। जब आप मोहनजोदड़ो की भूगोलिक स्थिति पर गौर करेंगे .... तो आप पाएंगे कि.... मोइन जोदडो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है... और , उसके चारों ओर दो किलोमीटर की परिधि में इस प्रकार की तबाही देखी जा सकती है.... जो ""मध्य केन्द्र से आरम्भ हो कर बाहर की तरफ गोलाकार फैल गयी"" थी..(जैसा कि परमाणु बम विस्फोट के बाद ही होता है ) पुरात्तव विशेषज्ञों ने यह भी पाया कि ''''चूने मिटटी के बर्तनों के अवशेष किसी भीषण ऊष्मा के कारण पिघल कर एक दूसरे के साथ जुड गये"" थे। हजारों की संख्या में वहां पर पाये गये इस तरह के ढेरों को पुरात्तव विशेषज्ञों ने काले पत्थरों ...... अर्थात ....‘""ब्लैक -स्टोन्स"" की संज्ञा दी। वैसी दशा किसी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे की राख के सूख जाने के कारण होती है... परन्तु मोहनजोदड़ो स्थल के आस पास कहीं भी कोई ज्वालामुखी की राख जमी हुयी नहीं पाई गयी। वहां के हालत ... चीख -चीख कर ये कह कर रहे हैं कि.... किसी कारण वहां की अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री तक पहुँची.... जिस में चीनी मिट्टी के पके हुये बर्तन भी पिघल गये । ध्यान देने योग्य बात है कि..... अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री की ऊष्णता ज्वालामुखी या फिर... अणु बम के विस्फोट पश्चात ही घटती है। ---------------------- इस मोहनजोदड़ो की व्याख्या करने में .....इतिहास मौन है...! परन्तु जब हम ... महाभारत .... और उसमे वर्णित घटनाओं पर नजर डालते हैं तो हर बात शीशे की तरह एक दम साफ हो जाती है....! महाभारत युद्ध में............ महासंहारक क्षमता वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान रथों के साथ एक ""परमाणु युद्ध का उल्लेख भी"" मिलता है। महाभारत में साफ साफ उल्लेखित है कि.... मय दानव के विमान रथ का परिवृत 12 क्यूबिट था..... और, उस में चार पहिये लगे थे। देव दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है.... जैसे कि, हम आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं। इस युद्ध के वृतान्त से बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। केवल संहारक शस्त्रों का ही प्रयोग नहीं........ अपितु, इन्द्र के वज्र अपने "चक्रदार रफलेक्टर" के माध्यम से "संहारक रूप में प्रगट" होता है। उस अस्त्र को जब दाग़ा गया तो एक विशालकाय अग्नि पुंज की तरह "उसने अपने लक्ष्य को निगल लिया" था। वह विनाश कितना भयावह था..... इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः- “अत्यन्त शक्तिशाली विमान से एक शक्ति–युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिसकी चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…! वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र "साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत" था..... जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…! उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि ..... पहचानने योग्य नहीं थे..... उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे… बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे ......और, पक्षी सफेद पड़ चुके थे…! कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए…उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया…” उपरोक्त दृश्य के वर्णन से स्पष्ट रूप से...ये.... हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट के दृश्य जैसा दृष्टिगत होता है। एक अन्य वृतान्त में....... श्री कृष्ण अपने प्रतिद्वंदी .... शल्व का आकाश में पीछा करते हैं.....उसी समय आकाश में शल्व का विमान "शुभः" अदृश्य हो जाता है। उस को नष्ट करने के विचार से श्री कृष्ण ने एक ऐसा अस्त्र छोडा...... जो आवाज के माध्यम से शत्रु को खोज कर उसे लक्षित कर सकता था। निश्चित तौर पर....... वो एक मिसाईल था..... और, आजकल ऐसे मिसाईल को ""हीट-सीकिंग और साऊड-सीकरस"" कहते हैं .... जो आधुनितम सेनाओं द्वारा प्रयोग किये जाते हैं। और.. तो और ....... आधुनिक राजस्थान में भी… परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं। राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है.... जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है, वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है..... जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे। अब ... बात जरा रामायण की भी कर लेते हैं...... "लक्ष्मण-रेखा" की तरह अदृश्य "इलेक्ट्रानिक फैंस" तो .... कोठियों में आज कल पालतु जानवरों को सीमित रखने के लिये प्रयोग की जाती है ... और, हीरे जवाहरात ... इत्यादि की प्रदर्शनी में.... उनकी सुरक्षा के लिए ""अदृश्य लेजर बीम"" का प्रयोग किया जाता है...! और.... अपने आप खुलने और बन्द हो जाने वाले दरवाजे तो ..... किसी भी माल में जा कर देखे जा सकते हैं। यह सभी चीजे पहले आश्चर्यजनक और काल्पनिक प्रतीत होती थी.. परन्तु आज यह आम बात बन चुकी हैं। यहाँ तक कि...."मन की गति से चलने वाले" रावण के पुष्पक-विमान का "प्रोटोटाईप" भी उडान भरने के लिये चीन ने बना लिया है। यहाँ सबसे उल्लेखनीय है कि..... रामायण तथा महाभारत के ग्रंथकार दो पृथक-पृथक ऋषि थे ......और, आजकल की सेनाओं के साथ उन का कोई सम्बन्ध नहीं था। वे दोनो महाऋषि थे.... और, किसी साईंटिफिक – फिक्शन के थ्रिल्लर – राईटर नहीं थे। उन के उल्लेखों में समानता इस बात की साक्षी है कि ......तथ्य क्या है और साहित्यक कल्पना क्या होती है.... क्योंकि कल्पना को भी विकसित होने के लिये किसी ठोस धरातल की ही आवश्यकता होती है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र जैसे अस्त्र अवश्य ही....... परमाणु शक्ति से सम्पन्न थे...! परन्तु ... आज ये विडम्बना है कि....... आज मूर्ख तथा हमारे धर्मग्रंथों के प्रति पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य अंग्रेजों की दी गई ... अंग्रेजी शिक्षा के कारण...... अधिकतर हिन्दू... अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं ....और, उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना....! इसीलिए मित्रो और देशवासियो..... खुद को पहचानो..... हम हिन्दू..... और.... हमारा हिंदुस्तान सर्वश्रेष्ठ है... और, हम तकनीकी रूप से भी विश्वगुरु ही हैं...! अतः ... मेरे ख्याल से ...हमें तकनीक के लिए विदेशियों का मुंह ताकना शोभा नहीं देता है...! क्योंकि.... हमें सिर्फ जरुरत है खुद को पहचानने और थोड़ी सी हिम्मत जुटा कर आगे बढ़ने की.... सफलता, कामयाबी और बुलंदी हम हिन्दुस्तानियों के खून में है..... फिर ये तकनीक की बिसात ही क्या है...??????? जय महाकाल...!!!

Thursday, May 31, 2012

Why Godse Killed Gandhi?


Nathuram Ghodse is often a misunderstood character. He is referred to as a Hindu fanatic. It is often hard to understand Godse because the Government of India had suppressed information about him. His court statements, letters etc. were all banned from the public until recently. Judging from his writings one thing becomes very clear – He was no fanatic. His court statements are very well read out and indicate a calm and collected mental disposition. He never even once speaks ill about Gandhi as a person, but only attacks Gandhi’s policies which caused ruin and untold misery to Hindus. Another interesting point to note is that Godse had been working with the Hindu refugees fleeing from Pakistan. He had seen the horrible atrocities committed on them. Many women had their hands cut off, nose cut off, even little girls had been raped mercilessly. Despite this Godse did not harm even single Muslim in India which he could easily have. So it would be a grave mistake to call him a Hindu fanatic. Let us start by studying the motive behind Godse’s act. By seeing the nature of the assassination in public space and Godse’s act of turning himself over to the Police, we can see that Godse did not do this for personal reasons. He very well knew that he would be hanged and his name would be disgraced as Gandhi was considered a saint. And again Godse could have ran away and escaped punishment. But he did the reverse. He called a police officer and courted arrest. Before we proceed it would be wise to understand the backdrop of the assassination. The central government had taken a decision — Pakistan will not be given Rs 55 crores. On January 13 Gandhi started a fast unto death that Pakistan must be given the money. On January 13, the central government changed its earlier decision and announced that Pakistan would be given the amount. On January 13, Nathuram decided to assassinate Gandhi. Nathuram Godse was a learned man, very sharp and intelligent – editor of “Agrani” (one of the most famous newspaper of that time – with Nana Aapte). In his last editorial of “Agrani” which he changed overnight – he said “Gandhi must be stopped – at any cost” and he justified why Gandhiji’s assassination was not only inevitable but also a delayed action, sth tht shud’ve happened LONG AGO. In Nathuram’s words – “ I don’t refute Gandhi’s theory of non-violence. He may be a saint but he is not a politician. His theory of non-violence denies self-defence and self-interest. The non-violence that defines the fight for survival as violence is a theory not of non-violence but of self-destruction.The division of the nation was an unnecessary decision. What was the percentage of the Muslim population as compared to the population of the nation? There was no need for a separate nation. Had it been a just demand, Maulana Azad would not have stayed back in India. But because Jinnah insisted and because Gandhi took his side, India was divided, in spite of opposition from the nation, the Cabinet. An individual is never greater than a nation. In a democracy you cannot put forward your demands at knife-point. Jinnah did it and Gandhi stabbed the nation with the same knife. He dissected the land and gave a piece to Pakistan. We did picket that time but in vain. The Father of our Nation went to perform his paternal duties for Pakistan! Gandhi blackmailed the cabinet with his fast unto death. His body, his threats to die are causing the destruction — geographical as well as economical — of the nation. Today, Muslims have taken a part of the nation, tomorrow Sikhs may ask for Punjab. The religions are again dividend into castes, they will demand sub-divisions of the divisions. What remains of the concept of one nation, national integration? Why did we fight the British in unison for independence? Why not separately? Bhagat Singh did not ask only for an independent Punjab or Subhash Chandra Bose for an independent Bengal? I am going to assassinate him in the open, before the public, because I am going to do it as my duty. If I do it surreptitiously, it becomes a crime in my own eyes. I will not try to escape, I will surrender and naturally I will be hanged. One assassination, one hanging. I don’t want two executions for one assassination and I don’t want your involvement, participation or company. (This was for Nana-Apte and Veer Savarkar as they were against ghandhi’s policies too, Godse wanted to assassinate gandhi all by himself and took promise from Nana Apte that he will continue helping Veer Savarkar in rebuilding India as a strong free nation.) On January 30, I reached Birla Bhavan at 12 pm. Gandhi was sitting outside on a cot enjoying the sunshine. Vallabhbhai Patel’s granddaughter was sitting at his feet. I had the revolver with me. I could have assassinated him easily then, but I was convinced that his assassination was to be a punishment and a sentence against him, and I would execute him. I wanted witnesses for the execution but there were none. I did not want to escape after the execution as there was not an iota of guilt in my mind. I wanted to surrender, but surrender to whom? There was a good crowd to collect for the evening prayers. I decided on the evening of January 30 as the date for Gandhi’s execution. Gandhi climbed the steps and came forward. He had kept his hands on the shoulders of the two girls. I wanted just three seconds more. I moved two steps forward and faced Gandhi. Now I wanted to take out the revolver and salute him for whatever sacrifice and service he had made for the nation. One of the two girls was dangerously close to Gandhi and I was afraid that she might be injured in the course of firing. As a precautionary measure I went one more step ahead, bowed before him and gently pushed the girl away from the firing line. The next moment I fired at Gandhi. Gandhi was very weak, there was a feeble sound like ‘aah’ (There are proof that Gandhi did NOT say “Hey Raam” at that time – it’s just made up stuff ) from him and he fell down. After the firing I raised my hand holding the revolver and shouted, ‘Police, police’. For 30 seconds nobody came forward and I scanned the crowd. I saw a police officer. I signalled to him to come forward and arrest me. He came and caught my wrist, then a second man came and touched the revolver… I let it go…” — मोपलाओं द्वरा हिन्दू नरसंहार के समर्थक अंधे सेकुलर और फर्जी अहिंसक गांधी का मैं कतई सम्मान नहीं करता !!

Sunday, December 18, 2011

शूद्रो का सच

आपको शायद कुछ तथ्य पता होगे पर पूरी तरह से नही, आप इसे पड़ कर अंत मे अपनी टिप्पणी जरूर दे ॥
सब जानते है आर्य बाहर से आए है , अब अगली बात अनार्य या द्रविडियन भी कई लाखो साल पहले अफ्रीका से आकार भारत मे बसे थे।
इनके बाद आर्य आए, आर्य समाज की 1 विशिष्ट संस्कृति, प्रथा, पददती थी, जिसमे खेती करना, पुजा पाठ इत्यादि बाते थी, पर अनार्य बर्बर और असंस्कारी थे जो जंगलो मे रहना, शिकार करना, कन्द मूल खा कर जिंदा रहना, मार काट ऐसी क्रियाए अनार्यो की थी, उस काल मे जब आर्य इस भूमि पर आकार बसने लगे तो यही बर्बर अनार्यो ने हमले करना, भेड़ बकरिया चुराना, आर्यों की महिलाओ को भागा ले जाना, धन लूट लेना, खेत नष्ट करना, जैसे कम करने लगे, बर्बरतापूर्ण कामो के वजह से आर्य ने संघटित हो कर इन सभी अनार्यो के साथ लड़ाइया करके उनपर जीत हासिल की और उनपर नियंत्रण रहे और बर्बरता से बाहर निकाल कर संस्कृति तौर पर समाज मे घुले मिले इसलिए उन्हे चतुर्थ वर्ण बनाकर चौथे यानि शूद्र वर्ण मे रखा ...
कुछ काल के बाद अनार्य जब समाज मे समरस हुये तो इस वर्ण व्यवस्था को बादल कर कर्म अनुसार बनाया गया...
पर कुछ काल के बाद सम्राट अशोक के हिन्दू धर्म छोड़कर बोद्ध स्वीकारने के बाद उनही अनार्यो (नाग वंशी और द्रविड़ वंशी ) ने पूरे हिन्दू समाज से बगावत कर के बोद्ध धर्मा के साथ जाने का निर्णय लिया और अशोका के मरने के बाद हिन्दुओ ने पुनः वर्चस्व हासिल कर लिया, यह चतुर्थ वर्ण व्यवस्था आनुवांशिक तौर पर कायम रखी और यही पददती आज़ाद होने तक चलती रही...
और आज़ादी के बाद इन्ही चतुर्थ वर्ण को हमारे राजनीतिज्ञो ने आरक्षण दे दिया, और इसी आरक्षण के कारण सारे ढोरे , गवार आज महत्त्वपूर्ण पदो पर बैठ कर मजे से देश को लूट रहे है, आपने कई शूद्रो को देखा होगा, जीतने वो भ्रष्ट होते है उतना कोई नही ।
क्या हम आर्य आज भी इनकी बर्बरता झेल रहे है ?

कुछ प्रश्न आपके लिए ?

कुछ प्रश्न जो आपके दिमाग मे भी होंगे
1.यदि पाकिस्तान और भारत का बटवारा धर्म के आधार पर हुआ जिसमे पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बना तो भारत हिन्दू राष्ट्र क्यूँ घोषित नहीं किया ? जबकि दुनिया मे एक भी हिन्दू राष्ट्र नहीं है !
2.तथाकथित राष्ट्र का पिता मोहनदास गांधी ने ऐसा क्यूँ कहा पाकिस्तान से हिन्दू सिखो की लाशे आए तो आए लेकिन यहाँ एक भी मुस्लिम का खून नहीं बहना चाहिए ?
3.मोहनदास करमचंद गांधी चाहते तो भगत सिंह जी को बचा सकते थे क्यूँ नहीं बचाया ?
4.भारत मे मुस्लिम के लिए अलग अलग धाराए क्यूँ है ?
5.ऐसा क्यूँ है की भारत से अलग होकर जीतने भी देश बने है सब इस्लामिक देश ही बने । क्यूँ ?
6.केरल मे कोई रिक्शा वाला वाहन चालक हिन्दू श्री कृष्ण जय हनुमान क्यूँ नहीं लिख सकता ?
7.भारत मे मुस्लिम 18% के आस पास है फिर भी अल्पसंख्यक कैसे है ? जबकि नियम कहता है की 10% के अंदर की संख्या ही अल्पसंख्यक है
8.कश्मीर से हिन्दुओ को क्यूँ खदेड़ दिया जबकि कश्मीर हिन्दुओ का राज्य था ?
9.ऐसा क्यूँ है की मुस्लिम जहा 30-40% हो जाते है तब अपने लिए अलग इस्लामिक राष्ट्र बनाने की मांग उठाते है विरोध करते है अन्य समुदाय के गले रेतते है क्यूँ ?
10.हिन्दुत्व को सांप्रदायिक क्यूँ ठहराया जाता है जबकि इस्लामिक आतंकवाद को धर्म से नहीं जोड़ने की अपील की जाती है ?
11.फरवरी मे बाबा रामदेव ने सर्वप्रथम भ्रष्टाचार के खिलद विशाल रेली आयोजित की थी, उस महारेली मे 1 लाख 18 हजार लोग आए थे तब मीडिया के किसी भी चेनल ने एक खबर तक नहीं दिखाई थी और जैसे ही अण्णा जंतर मंत्र पर मात्र 5000 समर्थको के साथ अनशन पर बैठे तो सारे मीडिया वाले अण्णा चालीसा गाने लगे ???? इसके पीछे क्या कारण है
12.अगर अण्णा हज़ारे को अनशन करना ही था तो रामदेव से मंच से पब्लिसिटी हासिल करके अलग मंच बनाने की क्या आवश्यकता थी ?
13.बॉलीवुड अण्णा हज़ारे का समर्थन करता है लेकिन रामदेवजी का विरोध क्यूँ करता है ?
14.हमारा देश ही दुनिया मे एक मात्र देश है जो मुस्लिम को हज सब्सिडी देता है 60 वर्षो मे सरकार ने इसके लिए 10000 करोड़ रुपये खर्च कर डाले क्यूँ ?
15.सोनिया गांधी ने आओनी जन्म दिनांक 1944 बताई है लेकिन सुचनाए कहती है की उसके पिताजी सिग्नोर स्टेफनो माइनो 1972 से 1945 के बीच रूस मे केदी थे कसिए बेवकूफ बना रही है ? सोनिया
16.भारत मे मुस्लिमो के मदरसो के अनुदान हिन्दू मंदिरो से क्यूँ ?
17.कश्मीर मे गीता उपदेश देने पर संवेधानिक अडचने क्यूँ है ?
18.जमा मस्जिद के इमाम सैयद बुखारी ने एक बार कहा था की वह ओसामा बिन लादेन का समर्थन करता है और आईएसआई का अजेंट है फिर भी भारत सरकार उसे गिरफ्तार क्यूँ नहीं करती ?
19.सरकार ने अण्णा हज़ारे के आंदोलन को सख्ती से नहीं कुचला जबकि रामदेव के समर्थको और स्वामी रामदेव की जान के पीछे पड़ी थी क्यूँ ?
20.मोहनदास गांधी ने अपने ब्रह्म चर्या के प्रयोग को बुढ़ापे मे करके क्या सीखा ? युवाओ को क्या सिखाया ?
21.पाकिस्तान मे 1947 मे 22.45% हिन्दू थे आज मात्र 1.12% शेष है सब कहा गए ?
22.मुगलो द्वारा ध्वस्त किया गया मंदिर सोमनाथ के जीर्णोद्धार की बात आई तो गांधी ने ऐसा क्यूँ कहा की यह सरकारी पैसे का दुरपयोग है जबकि जामा मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए सरकार पर दबाव डाला, अनशन पर बैठे
23.भारत मे 1947 मे 7.88% मुस्लिम थे आज 18.80% है इतनी आबादी कैसे बढ़ी ?
24.भारत मे मीडिया हिन्दुओ के, संघ के खिलाफ क्यूँ बोलती है ?
25.अकबर के हरम मे 4878 हिन्दू औरते थी, जोधा अकबर फिल्म मे और स्कूली इतिहास मे इसे क्यूँ नहीं छापा गया
26.ऐसा क्यूँ होता है की जो भी सोनिया गांधी का धर्म जानने की कोशिश करता है कोर्ट उसी पर जुर्माना लगा देता है ?
27.बाबर ने लाखो हिन्दुओ की हत्या की फिर भी हम उसकी मस्जिद क्यूँ देखना चाहते है ?
28.भारत मे 80% हिन्दू है फिर भी श्री राम मंदिर क्यूँ नहीं बन सकता ?
29.कॉंग्रेस के शासन मे 645 दंगे हुए है जिसमे 32,427 लोग मारे गए है मीडिया को वो दिखाई नहीं देता है जबकि गुजरात मे प्रतिकृया मे हुए दंगो मे 2000 लोग मारे गए उस पर मीडिया हो इतना हल्ला करती है क्यूँ ?
30.67 कारसेवको को गोधरा मे जिंदा जलाया मीडिया उनकी बाते क्यूँ नहीं करती ?
31.जवाहर लाल नेहरू के दादा एक मुस्लिम (गया सुद्दीन गाजी) थे, हमें इतिहास मे गलत क्यूँ बताया गया ?
32.भारत मे गुरु परंपरा रही है, हर महापुरुष के गुरु थे गांधी जी ने आज तक अपना गुरु क्यूँ नहीं बनाया ?
33.बाकी के प्रश्न आप जोड़िए इतने जोड़िए की लोगो का दिमाग हिल जाये
34.भारत एक ऐसा देश है जहा से सभ्यता शुरू हुई तो गांधी इस देश का पिता कैसे ?
35.दुनियामे एक भी हिन्दू देश नहीं है फिर भी आप सोचते है हिन्दू सांप्रदायिक है ?
36.गांधी ने खिलाफत आंदोलन को सहयोग क्यूँ दिया इससे क्या फायदे हुए ?
37.शुद्धि कारण आंदोलन कर रहे स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या करने वाले रशीद नाम के युवक को गांधी ने भाई कहकर संबोधित क्यूँ किया ? गांधी ने कहा था की रशीद भाई जैसा है और स्वामी श्रद्धानन्द हिन्दू एकता का कार्यक्रम चलकर के "हिन्दू - मुस्लिम एकता" को विखंडित कर रहे थे
38.जब तालिबान ने बुद्ध की मूर्तिया गिराई थी तो सेकुलर कीट मीडिया के "टाइम्स ऑफ इंडिया" ने अपने कॉलम मे लिखा था की यह बाबरी मस्जिद गिराने पर प्रतिशोध है क्या आप सहमत है इस वक्तव्य से ? जैसे को तैसा ? तो आप गुजरात के दंगो का विरोध क्यूँ करते हो वहाँ भी तो गोधरा कांड के विरोध मे बदले की आग मे दंगे हुए थे ?
39.ईसाई मिशनरी मुस्लिम इलाको मे धर्मांतरण क्यूँ नहीं करते ?
40.भारतीय मीडिया हिन्दुत्व विरोधी क्यूँ है ? संघ सबसे बड़ा एनजीओ है बिना किसी सरकारी मदद के फिर मीडिया को इससे क्या परेशानी है ? संघ देश के गरीब पिछड़े इलाको मे अपने स्वयं सेवी संस्थानो की मदद से मुफ्त मे विद्यालय चलता है जहां सरकारी योजनाए नहीं चलती क्या संघ देश विरोधी है ? या मीडिया ?
41.आप मीडिया के बारे मे क्या सोचते हो ? रामदेव भगवा धारी है इसलिए ? उसका समर्थन नहीं करती ? या अण्णा हज़ारे कॉंग्रेस प्रायोजित अजेंट ताकि राष्ट्रवादियो को बाँट कर वोट काट सके ? और कॉंग्रेस जीते ?
42.केरल मे आप जीसस अल्ला के नाम से शपथ ले सकते है लेकिन राम का नाम ले नहीं सकते ।
43.सेकुलर कीट TIMES OF INDIA ने अपने लेख मे लिखा था "किस तरह बंगलादेशी घुसपेथियों का भारतीयकरण किया जाये" आप ऐसे लेख से इन मीडिया की मंशा समझ सकते है की ये लोग भारत को एक धर्म शाला मानते है
44.हमारे राष्ट्र पति भवन मे एक मस्जिद है लेकिन मंदिर नहीं है क्या आप अभी भी सोचते है भारत एक सेकुलर देश है ?
45.लोग कहते है की ताजमहल के बारे मे ये सब कोरी अफवाहे है की यह एक हिन्दू मंदिर है" अगर ये अफवाहे है तो कार्बन 14 पद्धति से इसकी जांच करवा लो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा, और नीचे के आनन फानन मे बंद किए गए कमरे भी खोले जाए देश भी जाने की उसमे क्या है ? जैसे पद्मनाभ मंदिर के तहखाने खोले गए ? सच तो यह है की आगरा के पुरातत्व विभाग के पास भी ऐसी कोई जानकारी नहीं है की इस महल का निर्माण शाहजहा ने करवाया था
46.भारत मे मस्जिदों के इमाम और मौलवियों को दस दस हजार से अधिक तंख्वाह मिलती है पुजारीय को क्यूँ नहीं ? क्या यही सेकुलर वाद है ?
47.2002 मे कर्नाटक सरकार को मंदिरो से 72 करोड़ की आवक हुई जिसमे से 50 करोड़ मदरसो पर खर्च हुए, 10 करोड़ चर्च पर और सिर्फ 8.5 करोड़ मंदिरो पर ..... ? हिन्दू अपने पैसे से मस्जिद क्यूँ बनवाए ? क्यूँ चर्च चलाये ? क्या मदरसो से डॉक्टर, इंजीनियर निकलते है ?
48.यहाँ पॉप के आगमन पर राष्ट्र अवकाश रखा जाता है और शंकरचार्य को आधी रात दिवाली के दिन केद किया जाता है ...
49.पॉप को भारत मे बिना आने दिया जाता है और नेपाल के राजा को मक्कार सक्रांति पर नहीं आने दिया जाता (1965)
50.एक अँग्रेजी अखबार ने सोनिया का एक लेख छापा हिन्दुत्व पर .... ? क्या उस अखबार को सोनिया से बेहतर लेखक नहीं मिला ?
51.उत्तर पूर्वी राज्यो मे न्यूजीलेंड, ऑस्ट्रेलिया और निदर लेंड की सहायता से चर्च का निर्माण हो रहा है .... क्या आपको लगता है चर्च राष्ट्र वाद को बढ़ावा देते है ?

जय हिन्द

‎------------------------'जय हिन्द'-----------------------

'जय हिन्द' नारे का सीधा सम्बन्ध नेताजी से है , मगर सबसे पहले प्रयोगकर्ता नेताजी सुभाष चन्द्र बोस नहीं थे. आइये देखें यह किसके हृदय में पहले पहल उमड़ा और आम भारतीयों के लिए जय-घोष बन गया.

“जय हिन्द” के नारे की शुरूआत जिनसे होती है, उन क्रांतिकारी 'चेम्बाकरमण पिल्लई' का जन्म 15 सितम्बर 1891 को तिरूवनंतपुरम में हुआ था. गुलामी के के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज के के दौरान “जय हिन्द” को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया. 1908 में पिल्लई जर्मनी चले गए. अर्थशास्त्र में पी.एच.डी करने के बाद जर्मनी से ही अंग्रेजो के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू की. प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो - उन्होने जर्मन नौ-सेना में जूनियर अफसर का पद सम्भाला.

पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब “जय हिन्द” से उनका अभिवादन किया. पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को प्रभावित कर गए. इधर नेताजी आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना करना चाहते थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जिन ब्रिटिश सैनिको को कैद किया था, उनमें भारतीय सैनिक भी थे. 1941 में जर्मन की क़ैदियों की छावणी में नेताजी ने इन्हे सम्बोधित किया तथा अंग्रेजो का पक्ष छोड़ आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. यह समाचार अखबारों में छपा तो जर्मन में रह रहे भारतीय विद्यार्थी आबिद हुसैन ने अपनी पढ़ाई छोड़ नेताजी के सेक्रेट्री का पद सम्भाल लिया. आजाद हिन्द फौज के सैनिक आपस में अभिवादन किस भारतीय शब्द से करे यह प्रश्न सामने आया तब हुसैन ने”जय हिन्द” का सुझाव दिया.

उसके बाद २- नवम्बर 1941 को “जय-हिन्द” आजाद हिंद फ़ौज का युद्धघोष बन गया. जल्दी ही भारत भर में यह गूँजने लगा, मात्र कॉंग्रेस पर तब इसका प्रभाव नहीं था. 1946 में एक चुनाव सभा में जब लोग “कॉग्रेस जिन्दाबाद” के नारे लगा रहे थे, नेहरूजी ने लोगो से “जय हिन्द” का नारा लगाने के लिए कहा. अब तक “वन्दे-मातरम” ही कॉंग्रेस की अहिंसक लड़ाई का नारा रहा था, 15 अगस्त 1947 को नेहरू जी ने आजादी के बाद , लाल किले से अपने पहले भाषण का समापन, “जय हिन्द” से किया. डाकघरों को सुचना भेजी गई कि नए डाक टिकट आने तक , डाक टिकट चाहे अंग्रेज राजा जोर्ज की ही मुखाकृति की उपयोग में आये लेकिन उस पर मुहर “जय हिन्द” की लगाई जाये. यह 31 दिसम्बर 1947 तक यही मुहर चलती रही. केवल जोधपुर के गिर्दीकोट डाकघर ने इसका उपयोग नवम्बर 1955 तक जारी रखा. आज़ाद भारत की पहली डाक टिकट पर भी “जय हिन्द” लिखा हुआ था.

“जय हिन्द” अमर हो गया मगर क्रांतिकारी ' चेम्बाकरमण पिल्लई' इतिहास में कहीं खो गए.....

Friday, December 16, 2011

खानदानी लुटेरे

खानदानी शाही दवाखाने किसी के लिए नयी चीज नहीं हैं ,..जो शाही हैं वो खानदानी होते ही हैं ,..उनके दादा नाना से लेकर आने वाली औलादों तक सब नए नुस्खे ईजाद करते रहते हैं ,..दवाई से मरीज मरते रहें इनको कोई फर्क नहीं पड़ता ,..जब तक पुराने मरीज निपटते है तब तक नयी बीमारिया पैदा कर उसके शर्तिया ईलाज का दावा ठोक देते हैं ,..जनता फिरसे लाइन में लग जाती है …………………………………………………………………………………………… इस शाही खानदान की तारीफ ठीक से करने योग्य तो नहीं हूँ ,….फिर भी कोशिश करता हूँ !!!………..फूट डालकर गद्दी बचाए रखने की कला इस खानदान को अंग्रेज ठीक से सिखा गए थे ,.. .इस खानदानी दवाखाने का संस्थापक जब गुलाब का फूल थामे अंग्रेजन के कमरे से निकला तो बच्चों ने देख लिया और शोर मचा दिया ,..अंग्रेजन चालू थी ..तुरंत बच्चों को समझा दिया, ये तो चाचा हैं,..तब से बच्चा किसी का भी हो चाचा वही है ,..इसी चाचे ने पता नहीं अंग्रेजों से क्या समझौता किया कि देश की जनता महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस तक को भूल गयी ,….सत्ता हंस्तान्तरण के समय दिल्ली की गद्दी पर बैठने की ऐसी धुन चढ़ी कि, हिन्दुस्तान के टुकडे हो गए लेकिन बन्दे को कोई फर्क नहीं पड़ा ,….कश्मीर की बात आई तो चाचे ने लौहपुरुष को पीछे करते हुए कहा ,…”वहां का मौसम ठंडा होता है ..मुझे वहां आशिकी का बहुत अनुभव है…वहां का ईलाज मैं करूंगा !! ,..” .नतीजा. नासूर सबके सामने है ,.. फिर इन्होने पंचशील नामक दवा का आविष्कार किया ,…उसका नतीजा आज का हिन्दुस्तान भूल गया ,…देश के हजारों वीर जवान शहीद हो गए ,.जमीन छिन गयी ,.. चाचा जी ने दिल्ली में दो आंसू टपका दिए और देशभक्ति साबित कर दी ,..किसी की मजाल नहीं हुई जो उंगली उठाये !………….काबिल चेले चपाटों को आगे बढ़ा चाचा ने अपनी राह निष्कंटक बना ली ,….. कालांतर में उनकी बेटी ने दवाखाना संभाला ,..जितने भी खानदान विरोधी थे सबको निपटा दिया …जहाँ तक नजर उठाओ दरबार में सिर्फ गुलाम चमचे ही नजर आते थे,…वैसे नजर उठाने की हिम्मत ही किसकी थी ,..इन्होने गरीब मार दवाई का भी आविष्कार किया ,..बहुत कामयाब नुस्खा निकला ,…कोई गरीब नेता बचा ही नहीं !,….दुर्गा बनने का ऐसा भूत सवार हुआ कि मुक्तिवाहिनी बना दी ,..फिरसे हजारों वीर जवान शहीद हुए,.. माताओं बहनों के आंसुओं की नीलामी इन्होने शिमला में की ,.जहाँ बिना अपना कश्मीर लिए सबकुछ दान दे दिया ,..जो बीमारी ख़त्म हो सकती थी ,..इस शाही खानदान ने उसे नासूर बना कर ही दम लिया !!! ………एक बार कुछ लोगों ने विरोध में आवाज बुलंद की ….उसको निर्दयता से दबा दिया ,..कहा इमरजेंसी है …तगड़ा ईलाज करना होगा !,………पंजाब में बीमारी के विषाणु फैलाये फिर ईलाज इतना कड़वा किया कि अभी तक पूरा दर्द नहीं मिट सका !!…….इनके एक वारिस बेचारे जहाज उड़ाते उड़ाते नीचे गिर गए…….दुःख तो हुआ होगा ,.लेकिन बुद्धिमता से काम लेते हुए इतना भी नहीं पता लगाया कि उसमें आग क्यों नहीं लगी ?……शायद उनको अंदाजा रहा होगा कि पेट्रोल होता तो आग लगती !!…… इनके बाद इनके बेटे ने गद्दी संभाली ,….बीमार जनता ने हाथों हाथ लिया ,…साफगोई से देश को बताया कि ..” जो हम देते हैं उसका चार आना ही तुमको मिलता है !! “…बाद में हिसाबी चमचों ने समझाया होगा भैया पचास पैसा फिरसे अपने ही घर वापस आता है ,..उसके बाद यह बात इनके मुह से दुबारा कभी नहीं निकली ,..मस्त होकर दवाखाना चलाते रहे ,..खजाना भरता रहा ,….संभालने के लिए स्विस बैंक थे ही ….. इनके बाद इनकी विदेशी बेगम ने दवाखाना संभाला ,….गद्दी पर बैठने ही वाली थी कि महामहिम ने नागरिकता का सवाल पूछ लिया ,….कोई और रास्ता न देख इन्होने चरण पादुका सबसे ज्यादा वफादार मोहन लाल को थमा दी और खुद त्याग की देवी बन गयी ,…मोहन की गद्दी के बराबर एक नयी गद्दी बना राजमाता नयी बीमारियाँ और उनकी दवाएं ईजाद करने लगी……साथ साथ मूर्ख युवराज को आगे बढ़ाने लगी ,…कुछ शातिर लोगों को उसकी ट्रेनिंग का जिम्मा दिया गया ,……अब पूरा देश इस शाही खानदान द्वारा पैदा कि गयी बीमारीओं कि चपेट में है ,….वैसे तो मोहन लाचार है,. उसको कुछ पता ही नहीं ,……लेकिन जब विदेशी फायदे की बात आती है तो शायद उसको दो-चार चम्मच शेरनी का दूध पिला दिया जाता है ,…थोड़ी ताकत आ जाती है ..जैसे-तैसे एक दहाड़ तो निकल ही जाती है .. अब मूरख युवराज पूरा शातिर बन चूका है ,..समझ गया है कि जब चमचे चाट कर साफ़ कर देते हैं तो धोना क्यों ?….जहाँ उसके दवाखाने बंद हो गए , वहीँ जाकर विधवा विलाप करता है ,..नए नए तरीके सीखे हैं ,..उसे अपनी समझदारी से ज्यादा मरीजों की मूर्खता पर यकीन है ,…..मरीज कहेगा कि खांसी आ रही है तो वो जुलाब की गोली देने को कहता है ,….मरीज खांसने से पहले सौ बार सोचेगा ,…खांसे भी तो अन्दर ही अन्दर ,…जोर लगाया तो फिसलने का डर होगा ,..और ये जानता है कि डर बड़ी चीज है ,….अब इसने एक नयी बीमारी ईजाद की है ,..हिन्दू आतंकी नामक खयाली वायरस का खौफ दिखाकर फिरसे अपनी दवाई मुहमांगी कीमत पर बेचने को तैयार है ,..इसके कई फायदे हैं ,..एक तो इस वायरस के डर से बचे खुचे हिन्दू ईसाई बन जायेंगे दूसरा शाही दवाखाने का खजाना किसी के हाथ नहीं आएगा बल्कि दिन दूनी रात चौगुनी बढेगा ,…… तो मेरे खानदानी मूर्ख देशवासिओं ,..आओ हम अपनी सभी लाइलाज बीमारीओं और चारों तरफ से खतरनाक तरीके से घिरते देश की आन बान और शान की चिंता छोड़ इस गाँधी के कंधे में अपना कन्धा मिलाते रहें ,…..क्योंकि …..अब राज करेगा शातिर गाँधी … वन्देमातरम.... कुछ शब्द नेहरू के लिए - मोदी जी के निजी जीवन पर उंगली उठाने वालों ....कभी पता किया है कि यह जद्दनबाई कौन थी ..? उस जद्दनबाई का मकान नंबर ७७ मीरगंज इलाहाबाद से क्या सम्बन्ध था जिसे मोतीलाल नेहरू चलाते थे उस जद्दनबाई का वी पी सिंह नर्गिस और सुरैया से क्या सम्बन्ध था ..?? क्या वही जद्दनबाई वी पी सिंह की माँ नहीं थी जिसके तीन निकाह हुए थे..?? पहला निकाह नरोत्तमदास खत्री से जो बाद में मियां बन गया जिसे लोग बच्ची बाबू कहते थे दूसरा निकाह उस्ताद मीर खान से जिससे फिल्म एक्टर अनवर हुसैन पैदा हुए तीसरा निकाह उत्तमचंद मोहनचंद से जिसे लोग मोहन बाबू कहते थे जो मियां बन गए जिसका नाम अब्दुल रशीद हो गया वही अब्दुल रशीद जिसने आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानन्द जी को छुरा घोंप कर मार डाला था . बनारस की एक कोठेवाली दलीपाबाई पंडित मोतीलाल नेहरू की वैसीवाली पत्नी थीं. दलीपाबाई की पुत्री जद्दनबाई दुनिया की पहली महिला संगीतकार-गायिका थीं जिन्होंने फिल्मों में संगीत दिया. जद्दनबाई नें कई शादियां की होंगी लेकिन उनका पहला प्यार उत्तमचन्द मोहनचंद्जी थे जो कि एक डॉक्टर थे और जद्दनबाई से शादी करके अब्दुल रशीद बन गये थे. इसी शादी से जो तीन बच्चे हुए उनमें सबसे बडी का नाम उन्होंने फ़ातिमा ए.रशीद रखा. यही फातिमा आगे चलकर नरगिस नाम से मशहूर हुईं और थोडा और आगे जाने पर कॉंग्रेस सांसद स्वर्गीय सुनील दत्त की पत्नी बनीं थोडा और आगे जाने पर संजय दत्त की मां बनीं. मोती लाल नेहरु के परिवार को? मोती लाल नेहरु के एक पत्नी और चार अन्य अवेध्य पत्नियाँ थीं. ====================================== (१) श्रीमती स्वरुप कुमारी बक्शी (विवाहिता पत्नी )- से दो संतानें थीं श्रीमती कृष्णा w/o श्री जय सुख लाल हाथी (पूर्व राज्यपाल ). श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित w/o श्री आर.एस.पंडित (पूर्व. राजदूत रूस ) २) रहमान बाई - जिसका बचपन का नाम थुस्सू था ..जो कश्मीर से लाई गयी .. से श्री जवाहरलाल नेहरु - श्रीमती इंदिरा गाँधी -जिसका नाम मेमुना बेगम था श्रीमती इंदिरा गाँधी -जिसका नाम मेमुना बेगम से तीन पुत्र पहला राजीव गांधी... जिसे फिरोज खान उर्फ़ फिरोज घेन्दी ..गाँधी नहीं घेन्दी से पैदा हुआ मानते हैं दूसरा संजीव .. जो मुहम्मद युनुस से तीसरा आदिल शहरयार .. जिसे भोपाल गैस दुर्घटना के बाद एंडरसन के बदले अमेरिका की जेल से छुडवाया गया (३) श्रीमती मंजरी से श्री मेहरअली सोख्ता (प्रसिद्द आर्य समाजी नेता ) (४) ईरान की वेश्या से मो.अली जिन्ना जिसे पाकिस्तान मिला (५ )घर की नौकरानी (रसोइया ) से शेख अब्दुल्ला (कश्मीर के मुख्यमंत्री) अंग्रेजों ने इस भारत नाम के हिन्दू देश को तीन मुस्लिम देशों में बंट दिया .. तीनों का उर्दू नाम रख दिया .. ट्रांसफर ऑफ पवार एग्रीमेंट के द्वार झूठी आजादी दे दी .. साभार जॉन मथाईकी आत्मकथा से ( जवाहरलालनेहरु के व्यक्तिगत सचिव ).