Sunday, December 18, 2011

शूद्रो का सच

आपको शायद कुछ तथ्य पता होगे पर पूरी तरह से नही, आप इसे पड़ कर अंत मे अपनी टिप्पणी जरूर दे ॥
सब जानते है आर्य बाहर से आए है , अब अगली बात अनार्य या द्रविडियन भी कई लाखो साल पहले अफ्रीका से आकार भारत मे बसे थे।
इनके बाद आर्य आए, आर्य समाज की 1 विशिष्ट संस्कृति, प्रथा, पददती थी, जिसमे खेती करना, पुजा पाठ इत्यादि बाते थी, पर अनार्य बर्बर और असंस्कारी थे जो जंगलो मे रहना, शिकार करना, कन्द मूल खा कर जिंदा रहना, मार काट ऐसी क्रियाए अनार्यो की थी, उस काल मे जब आर्य इस भूमि पर आकार बसने लगे तो यही बर्बर अनार्यो ने हमले करना, भेड़ बकरिया चुराना, आर्यों की महिलाओ को भागा ले जाना, धन लूट लेना, खेत नष्ट करना, जैसे कम करने लगे, बर्बरतापूर्ण कामो के वजह से आर्य ने संघटित हो कर इन सभी अनार्यो के साथ लड़ाइया करके उनपर जीत हासिल की और उनपर नियंत्रण रहे और बर्बरता से बाहर निकाल कर संस्कृति तौर पर समाज मे घुले मिले इसलिए उन्हे चतुर्थ वर्ण बनाकर चौथे यानि शूद्र वर्ण मे रखा ...
कुछ काल के बाद अनार्य जब समाज मे समरस हुये तो इस वर्ण व्यवस्था को बादल कर कर्म अनुसार बनाया गया...
पर कुछ काल के बाद सम्राट अशोक के हिन्दू धर्म छोड़कर बोद्ध स्वीकारने के बाद उनही अनार्यो (नाग वंशी और द्रविड़ वंशी ) ने पूरे हिन्दू समाज से बगावत कर के बोद्ध धर्मा के साथ जाने का निर्णय लिया और अशोका के मरने के बाद हिन्दुओ ने पुनः वर्चस्व हासिल कर लिया, यह चतुर्थ वर्ण व्यवस्था आनुवांशिक तौर पर कायम रखी और यही पददती आज़ाद होने तक चलती रही...
और आज़ादी के बाद इन्ही चतुर्थ वर्ण को हमारे राजनीतिज्ञो ने आरक्षण दे दिया, और इसी आरक्षण के कारण सारे ढोरे , गवार आज महत्त्वपूर्ण पदो पर बैठ कर मजे से देश को लूट रहे है, आपने कई शूद्रो को देखा होगा, जीतने वो भ्रष्ट होते है उतना कोई नही ।
क्या हम आर्य आज भी इनकी बर्बरता झेल रहे है ?

कुछ प्रश्न आपके लिए ?

कुछ प्रश्न जो आपके दिमाग मे भी होंगे
1.यदि पाकिस्तान और भारत का बटवारा धर्म के आधार पर हुआ जिसमे पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बना तो भारत हिन्दू राष्ट्र क्यूँ घोषित नहीं किया ? जबकि दुनिया मे एक भी हिन्दू राष्ट्र नहीं है !
2.तथाकथित राष्ट्र का पिता मोहनदास गांधी ने ऐसा क्यूँ कहा पाकिस्तान से हिन्दू सिखो की लाशे आए तो आए लेकिन यहाँ एक भी मुस्लिम का खून नहीं बहना चाहिए ?
3.मोहनदास करमचंद गांधी चाहते तो भगत सिंह जी को बचा सकते थे क्यूँ नहीं बचाया ?
4.भारत मे मुस्लिम के लिए अलग अलग धाराए क्यूँ है ?
5.ऐसा क्यूँ है की भारत से अलग होकर जीतने भी देश बने है सब इस्लामिक देश ही बने । क्यूँ ?
6.केरल मे कोई रिक्शा वाला वाहन चालक हिन्दू श्री कृष्ण जय हनुमान क्यूँ नहीं लिख सकता ?
7.भारत मे मुस्लिम 18% के आस पास है फिर भी अल्पसंख्यक कैसे है ? जबकि नियम कहता है की 10% के अंदर की संख्या ही अल्पसंख्यक है
8.कश्मीर से हिन्दुओ को क्यूँ खदेड़ दिया जबकि कश्मीर हिन्दुओ का राज्य था ?
9.ऐसा क्यूँ है की मुस्लिम जहा 30-40% हो जाते है तब अपने लिए अलग इस्लामिक राष्ट्र बनाने की मांग उठाते है विरोध करते है अन्य समुदाय के गले रेतते है क्यूँ ?
10.हिन्दुत्व को सांप्रदायिक क्यूँ ठहराया जाता है जबकि इस्लामिक आतंकवाद को धर्म से नहीं जोड़ने की अपील की जाती है ?
11.फरवरी मे बाबा रामदेव ने सर्वप्रथम भ्रष्टाचार के खिलद विशाल रेली आयोजित की थी, उस महारेली मे 1 लाख 18 हजार लोग आए थे तब मीडिया के किसी भी चेनल ने एक खबर तक नहीं दिखाई थी और जैसे ही अण्णा जंतर मंत्र पर मात्र 5000 समर्थको के साथ अनशन पर बैठे तो सारे मीडिया वाले अण्णा चालीसा गाने लगे ???? इसके पीछे क्या कारण है
12.अगर अण्णा हज़ारे को अनशन करना ही था तो रामदेव से मंच से पब्लिसिटी हासिल करके अलग मंच बनाने की क्या आवश्यकता थी ?
13.बॉलीवुड अण्णा हज़ारे का समर्थन करता है लेकिन रामदेवजी का विरोध क्यूँ करता है ?
14.हमारा देश ही दुनिया मे एक मात्र देश है जो मुस्लिम को हज सब्सिडी देता है 60 वर्षो मे सरकार ने इसके लिए 10000 करोड़ रुपये खर्च कर डाले क्यूँ ?
15.सोनिया गांधी ने आओनी जन्म दिनांक 1944 बताई है लेकिन सुचनाए कहती है की उसके पिताजी सिग्नोर स्टेफनो माइनो 1972 से 1945 के बीच रूस मे केदी थे कसिए बेवकूफ बना रही है ? सोनिया
16.भारत मे मुस्लिमो के मदरसो के अनुदान हिन्दू मंदिरो से क्यूँ ?
17.कश्मीर मे गीता उपदेश देने पर संवेधानिक अडचने क्यूँ है ?
18.जमा मस्जिद के इमाम सैयद बुखारी ने एक बार कहा था की वह ओसामा बिन लादेन का समर्थन करता है और आईएसआई का अजेंट है फिर भी भारत सरकार उसे गिरफ्तार क्यूँ नहीं करती ?
19.सरकार ने अण्णा हज़ारे के आंदोलन को सख्ती से नहीं कुचला जबकि रामदेव के समर्थको और स्वामी रामदेव की जान के पीछे पड़ी थी क्यूँ ?
20.मोहनदास गांधी ने अपने ब्रह्म चर्या के प्रयोग को बुढ़ापे मे करके क्या सीखा ? युवाओ को क्या सिखाया ?
21.पाकिस्तान मे 1947 मे 22.45% हिन्दू थे आज मात्र 1.12% शेष है सब कहा गए ?
22.मुगलो द्वारा ध्वस्त किया गया मंदिर सोमनाथ के जीर्णोद्धार की बात आई तो गांधी ने ऐसा क्यूँ कहा की यह सरकारी पैसे का दुरपयोग है जबकि जामा मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए सरकार पर दबाव डाला, अनशन पर बैठे
23.भारत मे 1947 मे 7.88% मुस्लिम थे आज 18.80% है इतनी आबादी कैसे बढ़ी ?
24.भारत मे मीडिया हिन्दुओ के, संघ के खिलाफ क्यूँ बोलती है ?
25.अकबर के हरम मे 4878 हिन्दू औरते थी, जोधा अकबर फिल्म मे और स्कूली इतिहास मे इसे क्यूँ नहीं छापा गया
26.ऐसा क्यूँ होता है की जो भी सोनिया गांधी का धर्म जानने की कोशिश करता है कोर्ट उसी पर जुर्माना लगा देता है ?
27.बाबर ने लाखो हिन्दुओ की हत्या की फिर भी हम उसकी मस्जिद क्यूँ देखना चाहते है ?
28.भारत मे 80% हिन्दू है फिर भी श्री राम मंदिर क्यूँ नहीं बन सकता ?
29.कॉंग्रेस के शासन मे 645 दंगे हुए है जिसमे 32,427 लोग मारे गए है मीडिया को वो दिखाई नहीं देता है जबकि गुजरात मे प्रतिकृया मे हुए दंगो मे 2000 लोग मारे गए उस पर मीडिया हो इतना हल्ला करती है क्यूँ ?
30.67 कारसेवको को गोधरा मे जिंदा जलाया मीडिया उनकी बाते क्यूँ नहीं करती ?
31.जवाहर लाल नेहरू के दादा एक मुस्लिम (गया सुद्दीन गाजी) थे, हमें इतिहास मे गलत क्यूँ बताया गया ?
32.भारत मे गुरु परंपरा रही है, हर महापुरुष के गुरु थे गांधी जी ने आज तक अपना गुरु क्यूँ नहीं बनाया ?
33.बाकी के प्रश्न आप जोड़िए इतने जोड़िए की लोगो का दिमाग हिल जाये
34.भारत एक ऐसा देश है जहा से सभ्यता शुरू हुई तो गांधी इस देश का पिता कैसे ?
35.दुनियामे एक भी हिन्दू देश नहीं है फिर भी आप सोचते है हिन्दू सांप्रदायिक है ?
36.गांधी ने खिलाफत आंदोलन को सहयोग क्यूँ दिया इससे क्या फायदे हुए ?
37.शुद्धि कारण आंदोलन कर रहे स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या करने वाले रशीद नाम के युवक को गांधी ने भाई कहकर संबोधित क्यूँ किया ? गांधी ने कहा था की रशीद भाई जैसा है और स्वामी श्रद्धानन्द हिन्दू एकता का कार्यक्रम चलकर के "हिन्दू - मुस्लिम एकता" को विखंडित कर रहे थे
38.जब तालिबान ने बुद्ध की मूर्तिया गिराई थी तो सेकुलर कीट मीडिया के "टाइम्स ऑफ इंडिया" ने अपने कॉलम मे लिखा था की यह बाबरी मस्जिद गिराने पर प्रतिशोध है क्या आप सहमत है इस वक्तव्य से ? जैसे को तैसा ? तो आप गुजरात के दंगो का विरोध क्यूँ करते हो वहाँ भी तो गोधरा कांड के विरोध मे बदले की आग मे दंगे हुए थे ?
39.ईसाई मिशनरी मुस्लिम इलाको मे धर्मांतरण क्यूँ नहीं करते ?
40.भारतीय मीडिया हिन्दुत्व विरोधी क्यूँ है ? संघ सबसे बड़ा एनजीओ है बिना किसी सरकारी मदद के फिर मीडिया को इससे क्या परेशानी है ? संघ देश के गरीब पिछड़े इलाको मे अपने स्वयं सेवी संस्थानो की मदद से मुफ्त मे विद्यालय चलता है जहां सरकारी योजनाए नहीं चलती क्या संघ देश विरोधी है ? या मीडिया ?
41.आप मीडिया के बारे मे क्या सोचते हो ? रामदेव भगवा धारी है इसलिए ? उसका समर्थन नहीं करती ? या अण्णा हज़ारे कॉंग्रेस प्रायोजित अजेंट ताकि राष्ट्रवादियो को बाँट कर वोट काट सके ? और कॉंग्रेस जीते ?
42.केरल मे आप जीसस अल्ला के नाम से शपथ ले सकते है लेकिन राम का नाम ले नहीं सकते ।
43.सेकुलर कीट TIMES OF INDIA ने अपने लेख मे लिखा था "किस तरह बंगलादेशी घुसपेथियों का भारतीयकरण किया जाये" आप ऐसे लेख से इन मीडिया की मंशा समझ सकते है की ये लोग भारत को एक धर्म शाला मानते है
44.हमारे राष्ट्र पति भवन मे एक मस्जिद है लेकिन मंदिर नहीं है क्या आप अभी भी सोचते है भारत एक सेकुलर देश है ?
45.लोग कहते है की ताजमहल के बारे मे ये सब कोरी अफवाहे है की यह एक हिन्दू मंदिर है" अगर ये अफवाहे है तो कार्बन 14 पद्धति से इसकी जांच करवा लो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा, और नीचे के आनन फानन मे बंद किए गए कमरे भी खोले जाए देश भी जाने की उसमे क्या है ? जैसे पद्मनाभ मंदिर के तहखाने खोले गए ? सच तो यह है की आगरा के पुरातत्व विभाग के पास भी ऐसी कोई जानकारी नहीं है की इस महल का निर्माण शाहजहा ने करवाया था
46.भारत मे मस्जिदों के इमाम और मौलवियों को दस दस हजार से अधिक तंख्वाह मिलती है पुजारीय को क्यूँ नहीं ? क्या यही सेकुलर वाद है ?
47.2002 मे कर्नाटक सरकार को मंदिरो से 72 करोड़ की आवक हुई जिसमे से 50 करोड़ मदरसो पर खर्च हुए, 10 करोड़ चर्च पर और सिर्फ 8.5 करोड़ मंदिरो पर ..... ? हिन्दू अपने पैसे से मस्जिद क्यूँ बनवाए ? क्यूँ चर्च चलाये ? क्या मदरसो से डॉक्टर, इंजीनियर निकलते है ?
48.यहाँ पॉप के आगमन पर राष्ट्र अवकाश रखा जाता है और शंकरचार्य को आधी रात दिवाली के दिन केद किया जाता है ...
49.पॉप को भारत मे बिना आने दिया जाता है और नेपाल के राजा को मक्कार सक्रांति पर नहीं आने दिया जाता (1965)
50.एक अँग्रेजी अखबार ने सोनिया का एक लेख छापा हिन्दुत्व पर .... ? क्या उस अखबार को सोनिया से बेहतर लेखक नहीं मिला ?
51.उत्तर पूर्वी राज्यो मे न्यूजीलेंड, ऑस्ट्रेलिया और निदर लेंड की सहायता से चर्च का निर्माण हो रहा है .... क्या आपको लगता है चर्च राष्ट्र वाद को बढ़ावा देते है ?

जय हिन्द

‎------------------------'जय हिन्द'-----------------------

'जय हिन्द' नारे का सीधा सम्बन्ध नेताजी से है , मगर सबसे पहले प्रयोगकर्ता नेताजी सुभाष चन्द्र बोस नहीं थे. आइये देखें यह किसके हृदय में पहले पहल उमड़ा और आम भारतीयों के लिए जय-घोष बन गया.

“जय हिन्द” के नारे की शुरूआत जिनसे होती है, उन क्रांतिकारी 'चेम्बाकरमण पिल्लई' का जन्म 15 सितम्बर 1891 को तिरूवनंतपुरम में हुआ था. गुलामी के के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज के के दौरान “जय हिन्द” को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया. 1908 में पिल्लई जर्मनी चले गए. अर्थशास्त्र में पी.एच.डी करने के बाद जर्मनी से ही अंग्रेजो के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू की. प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो - उन्होने जर्मन नौ-सेना में जूनियर अफसर का पद सम्भाला.

पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब “जय हिन्द” से उनका अभिवादन किया. पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को प्रभावित कर गए. इधर नेताजी आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना करना चाहते थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जिन ब्रिटिश सैनिको को कैद किया था, उनमें भारतीय सैनिक भी थे. 1941 में जर्मन की क़ैदियों की छावणी में नेताजी ने इन्हे सम्बोधित किया तथा अंग्रेजो का पक्ष छोड़ आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. यह समाचार अखबारों में छपा तो जर्मन में रह रहे भारतीय विद्यार्थी आबिद हुसैन ने अपनी पढ़ाई छोड़ नेताजी के सेक्रेट्री का पद सम्भाल लिया. आजाद हिन्द फौज के सैनिक आपस में अभिवादन किस भारतीय शब्द से करे यह प्रश्न सामने आया तब हुसैन ने”जय हिन्द” का सुझाव दिया.

उसके बाद २- नवम्बर 1941 को “जय-हिन्द” आजाद हिंद फ़ौज का युद्धघोष बन गया. जल्दी ही भारत भर में यह गूँजने लगा, मात्र कॉंग्रेस पर तब इसका प्रभाव नहीं था. 1946 में एक चुनाव सभा में जब लोग “कॉग्रेस जिन्दाबाद” के नारे लगा रहे थे, नेहरूजी ने लोगो से “जय हिन्द” का नारा लगाने के लिए कहा. अब तक “वन्दे-मातरम” ही कॉंग्रेस की अहिंसक लड़ाई का नारा रहा था, 15 अगस्त 1947 को नेहरू जी ने आजादी के बाद , लाल किले से अपने पहले भाषण का समापन, “जय हिन्द” से किया. डाकघरों को सुचना भेजी गई कि नए डाक टिकट आने तक , डाक टिकट चाहे अंग्रेज राजा जोर्ज की ही मुखाकृति की उपयोग में आये लेकिन उस पर मुहर “जय हिन्द” की लगाई जाये. यह 31 दिसम्बर 1947 तक यही मुहर चलती रही. केवल जोधपुर के गिर्दीकोट डाकघर ने इसका उपयोग नवम्बर 1955 तक जारी रखा. आज़ाद भारत की पहली डाक टिकट पर भी “जय हिन्द” लिखा हुआ था.

“जय हिन्द” अमर हो गया मगर क्रांतिकारी ' चेम्बाकरमण पिल्लई' इतिहास में कहीं खो गए.....

Friday, December 16, 2011

खानदानी लुटेरे

खानदानी शाही दवाखाने किसी के लिए नयी चीज नहीं हैं ,..जो शाही हैं वो खानदानी होते ही हैं ,..उनके दादा नाना से लेकर आने वाली औलादों तक सब नए नुस्खे ईजाद करते रहते हैं ,..दवाई से मरीज मरते रहें इनको कोई फर्क नहीं पड़ता ,..जब तक पुराने मरीज निपटते है तब तक नयी बीमारिया पैदा कर उसके शर्तिया ईलाज का दावा ठोक देते हैं ,..जनता फिरसे लाइन में लग जाती है …………………………………………………………………………………………… इस शाही खानदान की तारीफ ठीक से करने योग्य तो नहीं हूँ ,….फिर भी कोशिश करता हूँ !!!………..फूट डालकर गद्दी बचाए रखने की कला इस खानदान को अंग्रेज ठीक से सिखा गए थे ,.. .इस खानदानी दवाखाने का संस्थापक जब गुलाब का फूल थामे अंग्रेजन के कमरे से निकला तो बच्चों ने देख लिया और शोर मचा दिया ,..अंग्रेजन चालू थी ..तुरंत बच्चों को समझा दिया, ये तो चाचा हैं,..तब से बच्चा किसी का भी हो चाचा वही है ,..इसी चाचे ने पता नहीं अंग्रेजों से क्या समझौता किया कि देश की जनता महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस तक को भूल गयी ,….सत्ता हंस्तान्तरण के समय दिल्ली की गद्दी पर बैठने की ऐसी धुन चढ़ी कि, हिन्दुस्तान के टुकडे हो गए लेकिन बन्दे को कोई फर्क नहीं पड़ा ,….कश्मीर की बात आई तो चाचे ने लौहपुरुष को पीछे करते हुए कहा ,…”वहां का मौसम ठंडा होता है ..मुझे वहां आशिकी का बहुत अनुभव है…वहां का ईलाज मैं करूंगा !! ,..” .नतीजा. नासूर सबके सामने है ,.. फिर इन्होने पंचशील नामक दवा का आविष्कार किया ,…उसका नतीजा आज का हिन्दुस्तान भूल गया ,…देश के हजारों वीर जवान शहीद हो गए ,.जमीन छिन गयी ,.. चाचा जी ने दिल्ली में दो आंसू टपका दिए और देशभक्ति साबित कर दी ,..किसी की मजाल नहीं हुई जो उंगली उठाये !………….काबिल चेले चपाटों को आगे बढ़ा चाचा ने अपनी राह निष्कंटक बना ली ,….. कालांतर में उनकी बेटी ने दवाखाना संभाला ,..जितने भी खानदान विरोधी थे सबको निपटा दिया …जहाँ तक नजर उठाओ दरबार में सिर्फ गुलाम चमचे ही नजर आते थे,…वैसे नजर उठाने की हिम्मत ही किसकी थी ,..इन्होने गरीब मार दवाई का भी आविष्कार किया ,..बहुत कामयाब नुस्खा निकला ,…कोई गरीब नेता बचा ही नहीं !,….दुर्गा बनने का ऐसा भूत सवार हुआ कि मुक्तिवाहिनी बना दी ,..फिरसे हजारों वीर जवान शहीद हुए,.. माताओं बहनों के आंसुओं की नीलामी इन्होने शिमला में की ,.जहाँ बिना अपना कश्मीर लिए सबकुछ दान दे दिया ,..जो बीमारी ख़त्म हो सकती थी ,..इस शाही खानदान ने उसे नासूर बना कर ही दम लिया !!! ………एक बार कुछ लोगों ने विरोध में आवाज बुलंद की ….उसको निर्दयता से दबा दिया ,..कहा इमरजेंसी है …तगड़ा ईलाज करना होगा !,………पंजाब में बीमारी के विषाणु फैलाये फिर ईलाज इतना कड़वा किया कि अभी तक पूरा दर्द नहीं मिट सका !!…….इनके एक वारिस बेचारे जहाज उड़ाते उड़ाते नीचे गिर गए…….दुःख तो हुआ होगा ,.लेकिन बुद्धिमता से काम लेते हुए इतना भी नहीं पता लगाया कि उसमें आग क्यों नहीं लगी ?……शायद उनको अंदाजा रहा होगा कि पेट्रोल होता तो आग लगती !!…… इनके बाद इनके बेटे ने गद्दी संभाली ,….बीमार जनता ने हाथों हाथ लिया ,…साफगोई से देश को बताया कि ..” जो हम देते हैं उसका चार आना ही तुमको मिलता है !! “…बाद में हिसाबी चमचों ने समझाया होगा भैया पचास पैसा फिरसे अपने ही घर वापस आता है ,..उसके बाद यह बात इनके मुह से दुबारा कभी नहीं निकली ,..मस्त होकर दवाखाना चलाते रहे ,..खजाना भरता रहा ,….संभालने के लिए स्विस बैंक थे ही ….. इनके बाद इनकी विदेशी बेगम ने दवाखाना संभाला ,….गद्दी पर बैठने ही वाली थी कि महामहिम ने नागरिकता का सवाल पूछ लिया ,….कोई और रास्ता न देख इन्होने चरण पादुका सबसे ज्यादा वफादार मोहन लाल को थमा दी और खुद त्याग की देवी बन गयी ,…मोहन की गद्दी के बराबर एक नयी गद्दी बना राजमाता नयी बीमारियाँ और उनकी दवाएं ईजाद करने लगी……साथ साथ मूर्ख युवराज को आगे बढ़ाने लगी ,…कुछ शातिर लोगों को उसकी ट्रेनिंग का जिम्मा दिया गया ,……अब पूरा देश इस शाही खानदान द्वारा पैदा कि गयी बीमारीओं कि चपेट में है ,….वैसे तो मोहन लाचार है,. उसको कुछ पता ही नहीं ,……लेकिन जब विदेशी फायदे की बात आती है तो शायद उसको दो-चार चम्मच शेरनी का दूध पिला दिया जाता है ,…थोड़ी ताकत आ जाती है ..जैसे-तैसे एक दहाड़ तो निकल ही जाती है .. अब मूरख युवराज पूरा शातिर बन चूका है ,..समझ गया है कि जब चमचे चाट कर साफ़ कर देते हैं तो धोना क्यों ?….जहाँ उसके दवाखाने बंद हो गए , वहीँ जाकर विधवा विलाप करता है ,..नए नए तरीके सीखे हैं ,..उसे अपनी समझदारी से ज्यादा मरीजों की मूर्खता पर यकीन है ,…..मरीज कहेगा कि खांसी आ रही है तो वो जुलाब की गोली देने को कहता है ,….मरीज खांसने से पहले सौ बार सोचेगा ,…खांसे भी तो अन्दर ही अन्दर ,…जोर लगाया तो फिसलने का डर होगा ,..और ये जानता है कि डर बड़ी चीज है ,….अब इसने एक नयी बीमारी ईजाद की है ,..हिन्दू आतंकी नामक खयाली वायरस का खौफ दिखाकर फिरसे अपनी दवाई मुहमांगी कीमत पर बेचने को तैयार है ,..इसके कई फायदे हैं ,..एक तो इस वायरस के डर से बचे खुचे हिन्दू ईसाई बन जायेंगे दूसरा शाही दवाखाने का खजाना किसी के हाथ नहीं आएगा बल्कि दिन दूनी रात चौगुनी बढेगा ,…… तो मेरे खानदानी मूर्ख देशवासिओं ,..आओ हम अपनी सभी लाइलाज बीमारीओं और चारों तरफ से खतरनाक तरीके से घिरते देश की आन बान और शान की चिंता छोड़ इस गाँधी के कंधे में अपना कन्धा मिलाते रहें ,…..क्योंकि …..अब राज करेगा शातिर गाँधी … वन्देमातरम.... कुछ शब्द नेहरू के लिए - मोदी जी के निजी जीवन पर उंगली उठाने वालों ....कभी पता किया है कि यह जद्दनबाई कौन थी ..? उस जद्दनबाई का मकान नंबर ७७ मीरगंज इलाहाबाद से क्या सम्बन्ध था जिसे मोतीलाल नेहरू चलाते थे उस जद्दनबाई का वी पी सिंह नर्गिस और सुरैया से क्या सम्बन्ध था ..?? क्या वही जद्दनबाई वी पी सिंह की माँ नहीं थी जिसके तीन निकाह हुए थे..?? पहला निकाह नरोत्तमदास खत्री से जो बाद में मियां बन गया जिसे लोग बच्ची बाबू कहते थे दूसरा निकाह उस्ताद मीर खान से जिससे फिल्म एक्टर अनवर हुसैन पैदा हुए तीसरा निकाह उत्तमचंद मोहनचंद से जिसे लोग मोहन बाबू कहते थे जो मियां बन गए जिसका नाम अब्दुल रशीद हो गया वही अब्दुल रशीद जिसने आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानन्द जी को छुरा घोंप कर मार डाला था . बनारस की एक कोठेवाली दलीपाबाई पंडित मोतीलाल नेहरू की वैसीवाली पत्नी थीं. दलीपाबाई की पुत्री जद्दनबाई दुनिया की पहली महिला संगीतकार-गायिका थीं जिन्होंने फिल्मों में संगीत दिया. जद्दनबाई नें कई शादियां की होंगी लेकिन उनका पहला प्यार उत्तमचन्द मोहनचंद्जी थे जो कि एक डॉक्टर थे और जद्दनबाई से शादी करके अब्दुल रशीद बन गये थे. इसी शादी से जो तीन बच्चे हुए उनमें सबसे बडी का नाम उन्होंने फ़ातिमा ए.रशीद रखा. यही फातिमा आगे चलकर नरगिस नाम से मशहूर हुईं और थोडा और आगे जाने पर कॉंग्रेस सांसद स्वर्गीय सुनील दत्त की पत्नी बनीं थोडा और आगे जाने पर संजय दत्त की मां बनीं. मोती लाल नेहरु के परिवार को? मोती लाल नेहरु के एक पत्नी और चार अन्य अवेध्य पत्नियाँ थीं. ====================================== (१) श्रीमती स्वरुप कुमारी बक्शी (विवाहिता पत्नी )- से दो संतानें थीं श्रीमती कृष्णा w/o श्री जय सुख लाल हाथी (पूर्व राज्यपाल ). श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित w/o श्री आर.एस.पंडित (पूर्व. राजदूत रूस ) २) रहमान बाई - जिसका बचपन का नाम थुस्सू था ..जो कश्मीर से लाई गयी .. से श्री जवाहरलाल नेहरु - श्रीमती इंदिरा गाँधी -जिसका नाम मेमुना बेगम था श्रीमती इंदिरा गाँधी -जिसका नाम मेमुना बेगम से तीन पुत्र पहला राजीव गांधी... जिसे फिरोज खान उर्फ़ फिरोज घेन्दी ..गाँधी नहीं घेन्दी से पैदा हुआ मानते हैं दूसरा संजीव .. जो मुहम्मद युनुस से तीसरा आदिल शहरयार .. जिसे भोपाल गैस दुर्घटना के बाद एंडरसन के बदले अमेरिका की जेल से छुडवाया गया (३) श्रीमती मंजरी से श्री मेहरअली सोख्ता (प्रसिद्द आर्य समाजी नेता ) (४) ईरान की वेश्या से मो.अली जिन्ना जिसे पाकिस्तान मिला (५ )घर की नौकरानी (रसोइया ) से शेख अब्दुल्ला (कश्मीर के मुख्यमंत्री) अंग्रेजों ने इस भारत नाम के हिन्दू देश को तीन मुस्लिम देशों में बंट दिया .. तीनों का उर्दू नाम रख दिया .. ट्रांसफर ऑफ पवार एग्रीमेंट के द्वार झूठी आजादी दे दी .. साभार जॉन मथाईकी आत्मकथा से ( जवाहरलालनेहरु के व्यक्तिगत सचिव ).

Friday, December 9, 2011

राम कथा पर बवाल क्यू ?

शिक्षा संस्थान और सैनिक स्कूलों में क्या फरक होता है ? शिक्षा संस्थान जहां उसमें दाखिला लेनेवाले छात्रों में ज्ञान हासिल करने का जज्बा पैदा करते हैं, स्वतंत्र चिंतन के लिए उन्हें तैयार करते हैं, उनकी सृजनात्मकता को नए पंख लगाने में मुब्तिला होते हैं, वही सैनिक स्कूलों की कोशिश ऐसे इन्सान रूपी रोबोट यानी यंत्रमानव बनाने की होती है, जो सोचें नहीं, बस अपने सीनियरों के आदेशों पर अमल करने के लिए हर वक्त तैयार रहें. लाजिम है कि विचारद्रोही प्रवृत्तियां समाज में जब भी हावी होती हैं, हम यही पाते हैं कि वे शिक्षा संस्थानों और सैनिक स्कूलों के फरक को मिटा देना चाहती हैं. वे ऐसे माहौल को बनाना चाहती हैं कि ज्ञान हासिल करने की पहली सीढ़ी- हर चीज़ पर सन्देह करने की प्रवृत्ति - से शिक्षा संस्थान में तौबा किया जा सके और वहां आज्ञाकारी रोबो का ही निर्माण हो.


दिल्ली के अकादमिक जगत में इन दिनों जारी विवाद को लेकर यही कहने का मन करता है और इसका ताल्लुक कन्नड एवं अंग्रेजी भाषा के मशहूर कवि, नाटककार एवं विद्वान प्रोफेसर ए के रामानुजन (1929-1993) के उस चर्चित निबंध ‘थ्री हण्ड्रेड रामायणाज: फाइव एक्जाम्पल्स एण्ड थाटस आन ट्रान्सलेशन’ यानी तीन सौ रामायण: पाँच उदाहरण और अनुवादों पर तीन विचार, से है जिसमें दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया में विद्यमान रामायण कथाओं की विभिन्न प्रस्तुतियों की चर्चा की गयी है.

अपने अनुसन्धान में उन्होंने यह पाया था कि विगत 2,500 वर्षों में दक्षिण एवं दक्षिणपूर्व एशिया में रामायण की चर्चा तमाम अन्य भाषाओं, समूहों एवं इलाकों में होती आयी है.

मालूम हो कि अन्नामीज, बालीनीज, बंगाली, कम्बोडियाई, चीनी, गुजराती, जावानीज, कन्नड, कश्मीरी, खोतानीज, लाओशियन, मलेशियन, मराठी, उड़िया, प्राकृत, संस्कृत, संथाली, सिंहली, तमिल, तेलगु, थाई, तिब्बती आदि विभिन्न भाषाओं में रामकथा अलग अलग ढंग से सुनायी जाती रही है. उनके मुताबिक तमाम भाषाओं में रामकथा के एक से अधिक रूप मौजूद हैं. उन्होंने यह भी पाया था कि संस्कृत भाषा में भी 25 अलग अलग रूपों में (महाकाव्य, काव्य, पुराण, पुरानी दन्तकथात्मक कहानियां आदि) रामायण सुनायी जाती रही हैं.

वैसे यह बात सर्वविदित ही है कि दक्षिण एव दक्षिण पूर्व के देशों में रामकथाओं का प्रभाव किसी न किसी रूप में आज भी दृष्टिगोचर होता है. मिसाल के तौर पर इंडोनेशिया जैसे मुस्लिमबहुल मुल्क में सड़कें, बैंक, ट्रैवल एजेंसीज, या अन्य उद्यम मिलते हैं, जिनके नाम रामायण के पात्रों पर रखे गए हैं. लोकसंस्कृति में भी किस हद तक रामकथा का वजूद बना हुआ है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है.

इण्डोनेशिया में बच्चे के जनम पर ‘मोचोपाट’ नामक समारोह होता है. अगर परिवार हिन्दु है तो वह धार्मिक आयोजन कहलाता है और अगर परिवार गैरहिन्दु है तो उसे संस्कृति के हिस्से के तौर पर आयोजित किया जाता है. ‘मोचोपाट’ में एक जानकार व्यक्ति लोगों के बीच बैठ कर रामायण के अंश सुनाता है, और फिर श्रोतागणों में उस पर बहस होती है. कभी-कभी यह आयोजन दिन भर चलता है. मकसद होता है, परिवार में जो नया सदस्य जनमा है, वह रामायण के अग्रणी पात्रों की तरह बने. आठवीं-नवीं सदी में इण्डोनेशिया में पहुंची रामायण कथा जावानीज भाषा में लिखी गयी थी.

सवाल यह उठता है कि एक सच्चे भारतीय के लिए- रामकथा के यह विभिन्न रूप, जिसने अलग-अलग समुदायों, समूहों में पहुंच कर अलग-अलग रूप धारण किए हैं- यह हक़ीकत किसी अपमान का सबब बननी चाहिए, या मुल्क की बहुसांस्कृतिकता, बहुभाषिकता, बहुविधता को ‘सेलेब्रेट’ करने का एक अवसर होना चाहिए.

साफ है कि ऐसे लोग, जो भारत की साझी विरासत की हक़ीकत को आज तक जज्ब़ नहीं कर पाए हैं और भारत का भविष्य अपने खास इकहरे एजेण्डा के तहत ढालना चाह रहे हैं, उन्हें रामायण के इन विभिन्न रूपों की मौजूदगी की बात को कबूल करना भी नागवार गुजर रहा है और इसलिए उन्होंने इसे आस्था के मसले के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश की है.

मालूम हो कि विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यापकों की अनुशंसा पर वर्ष 2006 में इस निबंध को पाठयक्रम में शामिल किया था. वर्ष 2008 में हिन्दुत्ववादी संगठनों की छात्रा शाखा ने इसे लेकर विरोध प्रदर्शन किया. उनका कहना था कि इस निबंध को पाठयक्रम से हटा देना चाहिए. अन्ततः मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा तब उसके निर्देश पर चार सदस्यीय कमेटी बनायी गयी, जिसके बहुमत ने यह निर्णय दिया कि प्रस्तुत निबंध को छात्रों को पढ़ाया जाना चाहिए, सिर्फ कमेटी के एक सदस्य ने इसका विरोध किया.

मामला वहीं खतम हो जाना चाहिए था, मगर जानबूझकर इस मसले को अकादमिक कौन्सिल के सामने रखा गया, जहां बैठे बहुलांश ने अपने होठों को सीले रखना ही मंजूर किया. फिलवक्त ‘बहुमत’ से इस निबंध को पाठयक्रम से हटा दिया गया है.

प्रस्तुत विवाद को लेकर प्रख्यात कन्नड साहित्यकार प्रो यू आर अनन्तमूर्ति के विचार गौरतलब हैं ‘‘भारत में हमेशा ही श्रुति, स्मृति और पुराणों में फरक किया जाता रहा है. अलग-अलग आस्थावानों के लिए अलग-अलग ढंग की श्रुतियां हैं, जो वेदों, कुराणों की तरह लगभग अपरिवर्तित रहती हैं. दूसरी तरफ स्मृति और पुराण गतिमान होते हैं और समय एवं संस्कृति के साथ बदलते हैं. भास जैसे महान कवियों ने महाभारत की समूची समस्या को बिना युद्ध के हल किया. यह बात विचित्र जान पड़ती है कि आधुनिक दौर में धार्मिक विश्वासों एवं आचारों का व्यवसायीकरण एवं विकृतिकरण किया जा रहा है. हमारे पुरखे आस्था, विश्वासों की जिस विविधता को सेलिब्रेट करते थे, उस सिलसिले को हम लोगों ने छोड़ दिया है.”

सवाल निश्चित ही महज एक निबंध का नहीं है. यह सोचने एवं तय करने की जरूरत है कि शिक्षा संस्थानों में पाठयक्रम तय करने का अधिकार अध्यापकों का अपना होगा या वहां दखलंदाजी करने की राज्य कारकों या गैरराज्यकारकों को खुली छूट होगी. निबंध को लेकर खड़ा विवाद दरअसल इस बात का परिचायक कि अकादमिक संस्थानों में विचारों के सैन्यीकरण का दौर लौट रहा है, जिस पर आस्था का मुलम्मा चढ़ाया जा रहा है. अभी ज्यादा दिन नहीं बीता जब शिवसेना के शोहदों ने मुंबई विश्वविद्यालय में पढ़ाये जा रहे रोहिण्टन मिस्त्री के उपन्यास ‘सच ए लांग जर्नी’ को हटाने में कामयाबी हासिल की थी, तो कुछ अन्य अतिवादी तत्वों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद जेम्स लेन की ‘शिवाजी’ पर प्रकाशित किताब पर सूबा महाराष्ट्र में अघोषित पाबन्दी लगा रखी है.

ऐसे सभी लोग, जो शिक्षा संस्थानों को खास ढंग से ढालना चाहते हैं, उन्हें इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं पर निगाह डालनी चाहिए. इस वर्ष का रसायन का नोबेल इस्त्राएली मूल के डैनिएल शेश्टमान को क्वासिक्रिस्टल्स की खोज को लेकर मिला है, जिसने पदार्थ की स्थापित धारणाओं को भी चुनौती दी है.

मालूम हो कि जब प्रोफेसर शेश्टमान ने पहली दफा यह संकल्पना रखी तो ऐसा वाहियात विचार रखने के लिए विश्वविद्यालय ने उन्हें रिसर्च ग्रुप छोड़ने के लिए कहा, मगर वह डटे रहे. सभी मानवीय ज्ञान क्या मानव की इसी अनोखी आदत से विकसित नहीं हुआ है- सभी चीजों पर सन्देह करो.

निश्चित ही शिक्षा संस्थानों को कुन्द जेहन रोबोट के निर्माण की फैक्टरी के तौर पर देखनेवाले लोग इस सच्चाई को कैसे जान सकते हैं !


क्या होगा देश का ?

आज किन नपुंसकों के हवाले है वतन साथियों?

1947 के बाद जितने भी भारत के प्रधान मंत्री हुए हैं ,सिवाय श्री लाल भाहादुर शास्त्री जी के, बगैर नाक के सांड थे, जब जी चाहा तब वेसा किया जो चाहा. देश को किसी ने नहीं संभाला| 1950 में एक अंग्रेजी परस्त बी. आर. आंबेडकर ने 5 -6 दूसरे देशो के संविधान क़ी नक़ल कर 26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान नामक एक फिजूल सा लेख पास करवा लिया जिसमे तीन टांगे ही थी| सर पैरों के बगैर कैसे कोई टिका रह सकता है| उस संविधान में, जिसे मै भारत माता क़ी बेटी कहता हूँ उसकी पोशाकों में 100 से अधिक ठेगले लगा दिए गये हैं इन कान्ग्रेसिओं ने| क्योंकि कपिल सिब्बल एंड पार्टी का कहना है क़ी संसद सबसे ऊपर है यानि एक बार 5 साल के लिए चुन गये तो फिर मारो उन बेवकूफों को जिन्होंने उन्हें चुनकर संसद में भेजा है|

राष्ट्रपति पद क़ी क्या आवश्यकता है| वह कुछ भी नहीं है, जो है वो चिदंबरम है- यानि गृह मंत्री| वो कहे तो फांसी दो, वर्ना मत दो| लोक सभा तो ठीक है राज्य सभा का क्या काम? जहाँ एक बार चुन लिए गए तो गई 5 सालों क़ी, और मजे करो, मौज करो और जनता के पैसों पर दुनिया घुमो, 5 सितारा होटलों मै एश करों, लाल बत्ती क़ी बुलेट प्रूफ कारों में घुमो, काले - काले भूतो के बीच सुरक्षित रहो, जनता जाये भाड़ में|

आज किन के हवाले किया वतन साथियों - इस नीच और पूरी तरह से भ्रष्‍ट कांग्रेस सरकार के.

जो 15 अगस्‍त 1947 को हमने जो पाया वो किसी भी अर्थो में आजादी नहीं कही जा सकती क्‍योंकि उस दिन तो गोरे अंग्रेजों से सत्‍ता का हस्‍तांरण काले अंग्रेजों को हुआ था यह हमारा दुर्भाग्‍य ही था कि इस देश की कमान एक अय्यास, नीच और चरित्रहीन जवाहरलाल नेहरू के हाथ में आ गई थी जो कि लार्ड माउंटबेटन की पत्‍नी पर फिदा होकर उसके तलवे चाट रहा था और जो हिंदू कहलाने में शर्म महसूस करता था | ऐसे नमकहरामों के हाथों में देश की बागडोर आ गई जो नपुंसक कांग्रेस सरकार भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वालों को राष्ट्रीय सम्मान दे, जो शहीद उधम सिंह के परिवार की दुर्दशा कर दे, जो राम प्रसाद बिस्मिल की कुर्बानियों को भुला दे, जो सुभाष चन्‍द्र बोस नेता जी को जिंदा ही दफ़न कर दे | आज देश के सारी परियोजनाएं व योजनाएं किसी न किसी गाँधी और नेहरू के नाम से ही शुरू होती है क्यों ?

राम जन्म भूमि

हमारा राम मंदिर- जिसके पुनर्निर्माण को लेकर आज भी काँग्रेस पीछे हट रही है ।
क्या हमे उसकी सच्चाई पता है ?
मैंने अपने इस लेख मे Google और अन्य कुछ साक्षों की मदद ली है, और साथ ही कुछ ऐसे प्रश्न रखे है, जिनके जवाब देश की जनता आज भी चाहती है ।
पहले हम मुस्लिम शाशक बाबर की बात करते है ।
मुस्लिम शासक बाबर 1527 में फरगना से आया था. उसने चित्तौरगढ़ के हिंदू राजा राणा संग्राम सिंह को फतेहपुर सिकरी में परास्त कर दिया. बाबर ने अपने युद्ध में तोपों और गोलों का इस्तेमाल किया. जीत के बाद बाबर ने इस क्षेत्र का प्रभार मीर बांकी को दे दिया. मीर बांकी ने उस क्षेत्र में मुस्लिम शासन लागू कर दिया. उसने आम नागरिकों को नियंत्रित

करने के लिए आतंक का सहारा लिया. मीर बांकी 1528 में अयोध्या आया और मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया

अब जरा अयोध्या के इतिहास और उससे जुड़े मुद्दो पर प्रकाश डालते है ।
अयोध्या की स्थापना - वैवस्वत मनु महाराज द्वारा सरयू तट पर अयोध्या की स्थापना की गई।
श्रीराम मंदिर - श्रीरामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए २१०० साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले ८४ स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर का ध्वंस - मीर बाकी मुस्लिम आक्रांता बाबर का सेनापति था, जिसने १५२८ ईस्वी में भगवान श्रीराम का यह विशाल मंदिर ध्वस्त किया।
पहला १५ दिवसीय संघर्ष - इस्लामी आक्रमणकारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने १५ दिन तक लगातार संघर्ष किया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई न कर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया। इस संघर्ष में १,७६,००० रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी।
कृपया मुझे बताए की उपरोक्त संख्या ज्यादा है या 1992 मरे हुये लोगो की , आखिर हमारा दोष क्या था की हमे करीब 2 लाख लोगों की जान देनी पड़ी, और ऊपर से हम पर ही आरोप लगाया गया ?
ढांचे का निर्माण - ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके। क्यू की उनकी औकात नही थी, की हमारे जैसा निर्माण कर सके, हमने तो पूरा मंदिर बना दिया उनसे तो केवल उस पर चुना लगाना था, वो भी नही हुआ । इसी बात से यह बात भी साबित होती है की ताज महल क्या है और किसने बनवाया होगा।
संघर्ष - १५२८ से १९४९ ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु ७६ संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।
रामलला प्रकट हुए - २२ दिसंबर, १९४९ की मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला प्रकट हुए। वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे।
मंदिर पर ताला - कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे को आपराधिक दंड संहिता की धारा १४५ के तहत रखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए, लेकिन एक पुजारी को दिन में दो बार ढांचे के अंदर जाकर दैनिक पूजा और अन्य अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति दी। श्रद्धालुओं को तालाबंद द्वार तक जाकर दर्शन की अनुमति थी। ताला लगे दरवाजों के सामने स्थानीय श्रद्धालुओं और संतों ने "श्रीराम जय राम जय जय राम" का अखंड संकीर्तन आरंभ कर दिया।
सबसे मुख्य तथ्य "मंदिर बनाने का संकल्प - पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री दाऊ दयाल खन्ना ने मार्च, १९८३ में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया। दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारी लाल नंदा

भी मंच पर उपस्थित थे।"
अब आप बताए की काँग्रेस क्यू अपनी ही प्रतिज्ञा पर अमल नही करती ?
पहली धर्म संसद - अप्रैल, १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया।
राम जानकी रथ यात्रा - विश्व हिन्दू परिषद् ने अक्तूबर, १९८४ में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की। लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएं रोकनी पड़ी थीं। अक्तूबर, १९८५ में रथ यात्राएं पुन: प्रारंभ हुईं।
अब मुझे बताए की क्या कारण थे की इन्दिरा गांधी की ह्त्या के कारण आंदोलन रोकना पड़ा ?
1 और मुख्य तथ्य "ताला खुला - इन रथ यात्राऔ से हिन्दू समाज में ऐसा प्रबल उत्साह जगा कि फैजाबाद के जिला दंडाधिकारी ने १ फरवरी, १९८६ को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के द्वार पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे श्री वीर बहादुर सिंह और देश के प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।"
श्रीराम मंदिर का प्रारूप - गुजरात के सुप्रसिद्ध मंदिर शिल्पकार श्री चंद्रकांत भाई सोमपुरा द्वारा प्रस्तावित मंदिर का रेखाचित्र तैयार किया गया। श्री चंद्रकांत के दादा पद्मश्री पी.ओ.सोमपुरा ने वर्तमान सोमनाथ मंदिर का प्रारूप भी बनाया था।
रामशिला पूजन - जनवरी, १९८९ में प्रयागराज में कुंभ मेले के पवित्र अवसर पर त्रिवेणी के किनारे विश्व हिन्दू परिषद् ने धर्म संसद का आयोजन किया। इसमें पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति में तय किया गया कि देश के हर मंदिर- हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किया जाए। पहली शिला का पूजन श्री बद्रीनाथ धाम में किया गया। देश और

विदेश से ऐसी २,७५,००० रामशिलाएं अक्तूबर, १९८९ के अंत तक अयोध्या पहुंच गईं। इस कार्यक्रम में ६ करोड़ लोगों ने भाग लिया।
अब मुझे बताए की क्या 6 करोड़ लोगों को पेसा देकर बुलाया गया था, या क्या वे खरीदे हुये थे?
मंदिर का शिलान्यास - ९ नवम्बर, १९८९ को बिहार के वंचित वर्ग के एक बंधु श्री कामेश्वर चौपाल द्वारा शिलान्यास किया गया। उस समय श्री नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।
देखिये फिर से काँग्रेस के ही लोगो ने काम किया ।
कारसेवा का आह्वान - २४ जून, १९९० को संतों ने देवोत्थान एकादशी (३० अक्तूबर १९९०) से मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा शुरू करने का आह्वान किया।
राम ज्योति - अयोध्या में अरणि मंथन से एक ज्योति प्रज्ज्वलित की गई। यह "राम ज्योति" देश भर में प्रत्येक हिन्दू घर में पहुंची और सबने मिलकर इस ज्योति से दीपावली मनाई।
हिन्दुत्व की विजय - ३० अक्तूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया।
कारसेवकों का बलिदान - २ नवम्बर, १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कोलकाता के राम कोठारी और शरद कोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं।
इसीलिए इस मुलायम को मुल्ला मुलायम कहते है ।
ऐतिहासिक रैली - ४ अप्रैल, १९९१ को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई। इसी दिन कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया।
रामपादुका पूजन - सितम्बर, १९९२ में भारत के गांव-गांव में श्री राम पादुका पूजन का आयोजन किया गया और गीता जयंती (६ दिसंबर, १९९२) के दिन रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया गया।
अपमान का प्रतीक ध्वस्त - लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया।
मंदिर के अवशेष मिले - ध्वस्त ढांचे की दीवारों से ५ फुट लंबी और २.२५ फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं २० पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत "ओम नम: शिवाय" से होती है। १५वीं, १७वीं और १९वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर "दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि" को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।
अब आप बताए की गलत कौन है ?
वर्तमान स्वरूप - कारसेवकों द्वारा तिरपाल की मदद से अस्थायी मंदिर का निर्माण किया गया। यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया जहां ध्वंस से पहले श्रीरामलला विराजमान थे। श्री पी.वी.नरसिंह राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार के एक अध्यादेश द्वारा श्रीरामलला की सुरक्षा के नाम पर लगभग ६७ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई। यह अध्यादेश संसद ने ७ जनवरी, १९९३ को एक कानून के जरिए पारित किया था।
फिर से काँग्रेस की जय हो ।।
दर्शन-पूजन निविर्घ्न - भक्तों द्वारा श्रीरामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध में अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर की। १ जनवरी, १९९३ को अनुमति दे दी गई। तब से दर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है।
अब बताए की मुस्लिम भाइयो को परेशानी क्या है ?
राष्ट्रपति का प्रश्न - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा.शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा १४३(ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रश्न "रेफर" किया। प्रश्न था, "क्या जिस स्थान पर ढांचा खड़ा था वहां रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी?"
इस 1 प्रश्न ने ही पूरे मुकदमे का रुख मोड कर रख दिया, यहा यह बात देखिये की यह प्रश्न भी 1 काँग्रेस के ही कार्यकर्ता का था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा - सर्वोच्च न्यायालय ने करीब २० महीने सुनवाई की और २४ अक्तूबर, १९९४ को अपने निर्णय में कहा-इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ विवादित स्थल के स्वामित्व का निर्णय करेगी और राष्ट्रपति द्वारा दिए गए विशेष "रेफरेंस" का जवाब देगी।
लखनऊ खण्डपीठ - तीन न्यायमूर्तियों (दो हिन्दू और एक मुस्लिम) की पूर्ण पीठ ने १९९५ में मामले की सुनवाई शुरू की। मुद्दों का पुनर्नियोजन किया गया। मौखिक साक्ष्यों को रिकार्ड करना शुरू किया गया।
भूगर्भीय सर्वेक्षण - अगस्त, २००२ में राष्ट्रपति के विशेष "रेफरेंस" का सीधा जवाब तलाशने के लिए उक्त पीठ ने उक्त स्थल पर "ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वे" का आदेश दिया जिसे कनाडा से आए विशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनल द्वारा किया गया। अपनी रपट में विशेषज्ञों ने ध्वस्त ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशाल ढांचे के मौजूद होने का

उल्लेख किया जो वैज्ञानिक तौर पर साबित करता था कि बाबरी ढांचा किसी खाली जगह पर नहीं बनाया गया था, जैसा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दिसंबर, १९६१ में फैजाबाद के दीवानी दंडाधिकारी के सामने दायर अपने मुकदमे में दावा किया है। विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक उत्खनन के जरिए जीपीआरएस रपट की सत्यता हेतु अपना मंतव्य भी दिया।
खुदाई - २००३ में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर उस स्थल की खुदाई करने और जीपीआरएस रपट को सत्यापित करने का आदेश दिया। अदालत द्वारा नियुक्त दो पर्यवेक्षकों (फैजाबाद के दो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी) की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों, उनके वकीलों, उनके विशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई के दौरान वहां बराबर उपस्थित रहने की अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आदेश दिया गया कि श्रमिकों में ४० प्रतिशत मुस्लिम होंगे।
अब आप देखिये हिन्दुओ की दरया दिली की श्रमिक भी मुस्लिम रखे । :)
मंदिर के साक्ष्य मिले - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। यह खुदाई आंखें खोल देने वाली थी। कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित ५० जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पायी गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रपट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रपट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं।
कानूनी प्रक्रिया पूरी - करीब ६० सालों (जिला न्यायालय में ४० साल और उच्च न्यायालय में २० साल) की सुनवाई के बाद इस मामले में न्यायालय की प्रक्रिया अब पूरी हो गई।
राम मंदिर के निर्माण में हो रही देरी को देखते हुए पुन: जनजागरण हेतु - ५ अप्रैल २०१० को हरिद्वार कुंभ मेला में संतों और धर्माचार्यों ने अपनी बैठक में श्री हनुमत शक्ति जागरण समिति के तत्वावधान में तुलसी जयंती (१६ अगस्त, २०१०) से अक्षय नवमी (१६ नवम्बर, २०१०) तक देश भर में हनुमान चालीसा पाठ करने की घोषणा की। प्रत्येक प्रखंड में देवोत्थान एकादशी (१७ नवम्बर, २०१०) से गीता जयंती (१६ दिसंबर, २०१०) तक श्री हनुमत शक्ति जागरण महायज्ञ संपन्न होंगे। ये सभी यज्ञ भारत में लगभग आठ हजार स्थानों पर आयोजित किए जाएंगे।
इतने के बाद भी हमे सघर्ष करना पड़ा । :(
ऐतिहासिक दिन - ३० सितम्बर, २०१० को अयोध्या आंदोलन के इतिहास का ऐतिहासिक दिन माना जाएगा। इसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एस.यू. खान ने एकमत से माना कि जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
ऐतिहासिक निर्णय - उक्त तीनों माननीय न्यायधीशों ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि जो विवादित ढांचा था वह एक बड़े भग्नावशेष पर खड़ा था। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि वह १२वीं शताब्दी के राम मंदिर को तोड़कर बनाया गया था, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि वह किसी बड़े हिन्दू धर्मस्थान को तोड़कर बनाया गया और न्यायमूर्ति खान ने कहा कि वह किसी पुराने ढांचे पर बना। पर किसी भी न्यायमूर्ति ने उस ढांचे को मस्जिद नहीं माना। सभी ने उस स्थान को रामजन्मभूमि ही माना।
अब आप बताए की जब खान साहब खुद इस बात को मान गए की वहाँ राम मंदिर था, तो काँग्रेस को क्या परेशानी है?

अब कुछ तथ्य जो मुस्लिम भी मानते है -
भारत के प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 में इस मस्जिद का निर्माण किया गया था। पुजारियों से हिन्दू ढांचे या निर्माण को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा. 1940 के दशक से पहले, मस्जिद को मस्जिद-इ-जन्मस्थान (हिन्दी: मस्जिद ए जन्मस्थान,उर्दू: مسجدِ جنمستھان, अनुवाद: "जन्मस्थान की मस्जिद") कहा जाता था, इस तरह इस स्थान को हिन्दू ईश्वर, भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है। पुजारियों से हिन्दू ढांचे को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा।
बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश, भारत के इस राज्य में 3 करोड़ 10 लाख मुस्लिम रहा करते हैं, की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक थी।
हालांकि आसपास के जिलों में और भी अनेक पुरानी मस्जिदें हैं, जिनमे शरीकी राजाओं द्वारा बनायी गयी हज़रत बल मस्जिद भी शामिल है, लेकिन विवादित स्थल के महत्व के कारण बाबरी मस्जिद सबसे बड़ी बन गयी. इसके आकार और प्रसिद्धि के बावजूद, जिले के मुस्लिम समुदाय द्वारा मस्जिद का उपयोग कम ही हुआ करता था और अदालतों में हिंदुओं द्वारा अनेक याचिकाओं के परिणामस्वरूप इस स्थल पर राम के हिन्दू भक्तों का प्रवेश होने लगा.।

मुस्लिम पक्ष - सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (सहमत) ने रिपोर्ट की आलोचना यह कहते हुए की कि "हर तरफ पशु हड्डियों के साथ ही साथ सुर्खी और चूना-गारा की मौजूदगी" जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मिला, ये सब मुसलमानों की उपस्थिति के लक्षण हैं "जो कि मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर के होने की बात को खारिज कर देती है" लेकिन 'खंबों की बुनियाद' के आधार पर रिपोर्ट कुछ और दावा करती है जो कि अपने निश्चयन में "स्पष्टतः धोखाधड़ी" है क्योंकि कोई खंबा नहीं मिला है,

अब मेरे भैया "पंकज निगम (तत्कालीन विहिप नगर प्रमुख) " जो की 1992 को कर सेवक थे की आंखो देखी - संक्षिप्त मे
"हम लोग 1992 को बाबरी विध्वंस के दिन ही अयोध्या पहुचे थे, किन्तु जब लोटे तब तक आधे से भी कम बचे थे, 6 दिसम्बर के बाद तिब्बत पुलिस ने सरयू नदी को लाशों से पाट दिया था, जिसमे सभी लाशे कर सेवको की थी, सभी बसे जो भी आजा रही थी सभी लाशों से भरी थी, रात के समय तिब्बत पुलिस फ़ाइरिंग करती थी जो भी उसके बीच मे आगया उसका राम नाम सत्य का मोका भी नही मिलता था, लाशे नदी मे बहा दी जाती थी।
हम लोगो ने गिरफदारी दे दी थी, और हमे 18 दिनो तक 1 जेल मे रखा गया, जहा उन 18 दिनो मे हमारे कई साथी भूख और बीमारी से मर गए, क्यू की जेल मे ना तो कुछ खाने को दिया जाता था, ना दिसम्बर की ठंड से बचाने की कोई व्यवस्था थी, 15 दिनो से भूखे होने के बाद भी हम 5 लोग जेल से भागने मे कामयाब हुये, और जंगलो से रास्ते पेडल दिल्ली पहुचे, वह पर हमारे कुछ अन्य लोग थे, उनकी मदद से नागदा पहुचे ।"

अब मुझे बताइये की हमारा राम मंदिर पहले तोड़ा गया उस समय लगभग 2 लाख लोग मारे गए फिर बाद मे हम पर ही जुल्म हुये और हमे ही दोष दिया जाता रहा?

विहिप ने मस्जिद तोड़ कर क्या गलत किया?

क्या कल से कोई चोर आपके घर मे घुसेगा तो आप उसे भगाएगे नही , चाहे इसके लिए आपको अपना या दूसरे किसी का भी खून ही क्यू न बहाना पड़े ?

फिर क्यू हमे हिन्दू आतंकवादी कहा जा रहा है, यह तो वैसा ही है, जैसा भगत सिंह को डाकू कहना ?

क्या जवाब है आपके पास ?