Friday, December 9, 2011

राम जन्म भूमि

हमारा राम मंदिर- जिसके पुनर्निर्माण को लेकर आज भी काँग्रेस पीछे हट रही है ।
क्या हमे उसकी सच्चाई पता है ?
मैंने अपने इस लेख मे Google और अन्य कुछ साक्षों की मदद ली है, और साथ ही कुछ ऐसे प्रश्न रखे है, जिनके जवाब देश की जनता आज भी चाहती है ।
पहले हम मुस्लिम शाशक बाबर की बात करते है ।
मुस्लिम शासक बाबर 1527 में फरगना से आया था. उसने चित्तौरगढ़ के हिंदू राजा राणा संग्राम सिंह को फतेहपुर सिकरी में परास्त कर दिया. बाबर ने अपने युद्ध में तोपों और गोलों का इस्तेमाल किया. जीत के बाद बाबर ने इस क्षेत्र का प्रभार मीर बांकी को दे दिया. मीर बांकी ने उस क्षेत्र में मुस्लिम शासन लागू कर दिया. उसने आम नागरिकों को नियंत्रित

करने के लिए आतंक का सहारा लिया. मीर बांकी 1528 में अयोध्या आया और मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया

अब जरा अयोध्या के इतिहास और उससे जुड़े मुद्दो पर प्रकाश डालते है ।
अयोध्या की स्थापना - वैवस्वत मनु महाराज द्वारा सरयू तट पर अयोध्या की स्थापना की गई।
श्रीराम मंदिर - श्रीरामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए २१०० साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले ८४ स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर का ध्वंस - मीर बाकी मुस्लिम आक्रांता बाबर का सेनापति था, जिसने १५२८ ईस्वी में भगवान श्रीराम का यह विशाल मंदिर ध्वस्त किया।
पहला १५ दिवसीय संघर्ष - इस्लामी आक्रमणकारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने १५ दिन तक लगातार संघर्ष किया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई न कर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया। इस संघर्ष में १,७६,००० रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी।
कृपया मुझे बताए की उपरोक्त संख्या ज्यादा है या 1992 मरे हुये लोगो की , आखिर हमारा दोष क्या था की हमे करीब 2 लाख लोगों की जान देनी पड़ी, और ऊपर से हम पर ही आरोप लगाया गया ?
ढांचे का निर्माण - ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके। क्यू की उनकी औकात नही थी, की हमारे जैसा निर्माण कर सके, हमने तो पूरा मंदिर बना दिया उनसे तो केवल उस पर चुना लगाना था, वो भी नही हुआ । इसी बात से यह बात भी साबित होती है की ताज महल क्या है और किसने बनवाया होगा।
संघर्ष - १५२८ से १९४९ ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु ७६ संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।
रामलला प्रकट हुए - २२ दिसंबर, १९४९ की मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला प्रकट हुए। वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे।
मंदिर पर ताला - कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे को आपराधिक दंड संहिता की धारा १४५ के तहत रखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए, लेकिन एक पुजारी को दिन में दो बार ढांचे के अंदर जाकर दैनिक पूजा और अन्य अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति दी। श्रद्धालुओं को तालाबंद द्वार तक जाकर दर्शन की अनुमति थी। ताला लगे दरवाजों के सामने स्थानीय श्रद्धालुओं और संतों ने "श्रीराम जय राम जय जय राम" का अखंड संकीर्तन आरंभ कर दिया।
सबसे मुख्य तथ्य "मंदिर बनाने का संकल्प - पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री दाऊ दयाल खन्ना ने मार्च, १९८३ में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया। दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारी लाल नंदा

भी मंच पर उपस्थित थे।"
अब आप बताए की काँग्रेस क्यू अपनी ही प्रतिज्ञा पर अमल नही करती ?
पहली धर्म संसद - अप्रैल, १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया।
राम जानकी रथ यात्रा - विश्व हिन्दू परिषद् ने अक्तूबर, १९८४ में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की। लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएं रोकनी पड़ी थीं। अक्तूबर, १९८५ में रथ यात्राएं पुन: प्रारंभ हुईं।
अब मुझे बताए की क्या कारण थे की इन्दिरा गांधी की ह्त्या के कारण आंदोलन रोकना पड़ा ?
1 और मुख्य तथ्य "ताला खुला - इन रथ यात्राऔ से हिन्दू समाज में ऐसा प्रबल उत्साह जगा कि फैजाबाद के जिला दंडाधिकारी ने १ फरवरी, १९८६ को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के द्वार पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे श्री वीर बहादुर सिंह और देश के प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।"
श्रीराम मंदिर का प्रारूप - गुजरात के सुप्रसिद्ध मंदिर शिल्पकार श्री चंद्रकांत भाई सोमपुरा द्वारा प्रस्तावित मंदिर का रेखाचित्र तैयार किया गया। श्री चंद्रकांत के दादा पद्मश्री पी.ओ.सोमपुरा ने वर्तमान सोमनाथ मंदिर का प्रारूप भी बनाया था।
रामशिला पूजन - जनवरी, १९८९ में प्रयागराज में कुंभ मेले के पवित्र अवसर पर त्रिवेणी के किनारे विश्व हिन्दू परिषद् ने धर्म संसद का आयोजन किया। इसमें पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति में तय किया गया कि देश के हर मंदिर- हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किया जाए। पहली शिला का पूजन श्री बद्रीनाथ धाम में किया गया। देश और

विदेश से ऐसी २,७५,००० रामशिलाएं अक्तूबर, १९८९ के अंत तक अयोध्या पहुंच गईं। इस कार्यक्रम में ६ करोड़ लोगों ने भाग लिया।
अब मुझे बताए की क्या 6 करोड़ लोगों को पेसा देकर बुलाया गया था, या क्या वे खरीदे हुये थे?
मंदिर का शिलान्यास - ९ नवम्बर, १९८९ को बिहार के वंचित वर्ग के एक बंधु श्री कामेश्वर चौपाल द्वारा शिलान्यास किया गया। उस समय श्री नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।
देखिये फिर से काँग्रेस के ही लोगो ने काम किया ।
कारसेवा का आह्वान - २४ जून, १९९० को संतों ने देवोत्थान एकादशी (३० अक्तूबर १९९०) से मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा शुरू करने का आह्वान किया।
राम ज्योति - अयोध्या में अरणि मंथन से एक ज्योति प्रज्ज्वलित की गई। यह "राम ज्योति" देश भर में प्रत्येक हिन्दू घर में पहुंची और सबने मिलकर इस ज्योति से दीपावली मनाई।
हिन्दुत्व की विजय - ३० अक्तूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया।
कारसेवकों का बलिदान - २ नवम्बर, १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कोलकाता के राम कोठारी और शरद कोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं।
इसीलिए इस मुलायम को मुल्ला मुलायम कहते है ।
ऐतिहासिक रैली - ४ अप्रैल, १९९१ को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई। इसी दिन कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया।
रामपादुका पूजन - सितम्बर, १९९२ में भारत के गांव-गांव में श्री राम पादुका पूजन का आयोजन किया गया और गीता जयंती (६ दिसंबर, १९९२) के दिन रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया गया।
अपमान का प्रतीक ध्वस्त - लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया।
मंदिर के अवशेष मिले - ध्वस्त ढांचे की दीवारों से ५ फुट लंबी और २.२५ फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं २० पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत "ओम नम: शिवाय" से होती है। १५वीं, १७वीं और १९वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर "दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि" को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।
अब आप बताए की गलत कौन है ?
वर्तमान स्वरूप - कारसेवकों द्वारा तिरपाल की मदद से अस्थायी मंदिर का निर्माण किया गया। यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया जहां ध्वंस से पहले श्रीरामलला विराजमान थे। श्री पी.वी.नरसिंह राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार के एक अध्यादेश द्वारा श्रीरामलला की सुरक्षा के नाम पर लगभग ६७ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई। यह अध्यादेश संसद ने ७ जनवरी, १९९३ को एक कानून के जरिए पारित किया था।
फिर से काँग्रेस की जय हो ।।
दर्शन-पूजन निविर्घ्न - भक्तों द्वारा श्रीरामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध में अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर की। १ जनवरी, १९९३ को अनुमति दे दी गई। तब से दर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है।
अब बताए की मुस्लिम भाइयो को परेशानी क्या है ?
राष्ट्रपति का प्रश्न - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा.शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा १४३(ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रश्न "रेफर" किया। प्रश्न था, "क्या जिस स्थान पर ढांचा खड़ा था वहां रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी?"
इस 1 प्रश्न ने ही पूरे मुकदमे का रुख मोड कर रख दिया, यहा यह बात देखिये की यह प्रश्न भी 1 काँग्रेस के ही कार्यकर्ता का था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा - सर्वोच्च न्यायालय ने करीब २० महीने सुनवाई की और २४ अक्तूबर, १९९४ को अपने निर्णय में कहा-इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ विवादित स्थल के स्वामित्व का निर्णय करेगी और राष्ट्रपति द्वारा दिए गए विशेष "रेफरेंस" का जवाब देगी।
लखनऊ खण्डपीठ - तीन न्यायमूर्तियों (दो हिन्दू और एक मुस्लिम) की पूर्ण पीठ ने १९९५ में मामले की सुनवाई शुरू की। मुद्दों का पुनर्नियोजन किया गया। मौखिक साक्ष्यों को रिकार्ड करना शुरू किया गया।
भूगर्भीय सर्वेक्षण - अगस्त, २००२ में राष्ट्रपति के विशेष "रेफरेंस" का सीधा जवाब तलाशने के लिए उक्त पीठ ने उक्त स्थल पर "ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वे" का आदेश दिया जिसे कनाडा से आए विशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनल द्वारा किया गया। अपनी रपट में विशेषज्ञों ने ध्वस्त ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशाल ढांचे के मौजूद होने का

उल्लेख किया जो वैज्ञानिक तौर पर साबित करता था कि बाबरी ढांचा किसी खाली जगह पर नहीं बनाया गया था, जैसा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दिसंबर, १९६१ में फैजाबाद के दीवानी दंडाधिकारी के सामने दायर अपने मुकदमे में दावा किया है। विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक उत्खनन के जरिए जीपीआरएस रपट की सत्यता हेतु अपना मंतव्य भी दिया।
खुदाई - २००३ में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर उस स्थल की खुदाई करने और जीपीआरएस रपट को सत्यापित करने का आदेश दिया। अदालत द्वारा नियुक्त दो पर्यवेक्षकों (फैजाबाद के दो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी) की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों, उनके वकीलों, उनके विशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई के दौरान वहां बराबर उपस्थित रहने की अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आदेश दिया गया कि श्रमिकों में ४० प्रतिशत मुस्लिम होंगे।
अब आप देखिये हिन्दुओ की दरया दिली की श्रमिक भी मुस्लिम रखे । :)
मंदिर के साक्ष्य मिले - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। यह खुदाई आंखें खोल देने वाली थी। कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित ५० जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पायी गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रपट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रपट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं।
कानूनी प्रक्रिया पूरी - करीब ६० सालों (जिला न्यायालय में ४० साल और उच्च न्यायालय में २० साल) की सुनवाई के बाद इस मामले में न्यायालय की प्रक्रिया अब पूरी हो गई।
राम मंदिर के निर्माण में हो रही देरी को देखते हुए पुन: जनजागरण हेतु - ५ अप्रैल २०१० को हरिद्वार कुंभ मेला में संतों और धर्माचार्यों ने अपनी बैठक में श्री हनुमत शक्ति जागरण समिति के तत्वावधान में तुलसी जयंती (१६ अगस्त, २०१०) से अक्षय नवमी (१६ नवम्बर, २०१०) तक देश भर में हनुमान चालीसा पाठ करने की घोषणा की। प्रत्येक प्रखंड में देवोत्थान एकादशी (१७ नवम्बर, २०१०) से गीता जयंती (१६ दिसंबर, २०१०) तक श्री हनुमत शक्ति जागरण महायज्ञ संपन्न होंगे। ये सभी यज्ञ भारत में लगभग आठ हजार स्थानों पर आयोजित किए जाएंगे।
इतने के बाद भी हमे सघर्ष करना पड़ा । :(
ऐतिहासिक दिन - ३० सितम्बर, २०१० को अयोध्या आंदोलन के इतिहास का ऐतिहासिक दिन माना जाएगा। इसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एस.यू. खान ने एकमत से माना कि जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
ऐतिहासिक निर्णय - उक्त तीनों माननीय न्यायधीशों ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि जो विवादित ढांचा था वह एक बड़े भग्नावशेष पर खड़ा था। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि वह १२वीं शताब्दी के राम मंदिर को तोड़कर बनाया गया था, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि वह किसी बड़े हिन्दू धर्मस्थान को तोड़कर बनाया गया और न्यायमूर्ति खान ने कहा कि वह किसी पुराने ढांचे पर बना। पर किसी भी न्यायमूर्ति ने उस ढांचे को मस्जिद नहीं माना। सभी ने उस स्थान को रामजन्मभूमि ही माना।
अब आप बताए की जब खान साहब खुद इस बात को मान गए की वहाँ राम मंदिर था, तो काँग्रेस को क्या परेशानी है?

अब कुछ तथ्य जो मुस्लिम भी मानते है -
भारत के प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 में इस मस्जिद का निर्माण किया गया था। पुजारियों से हिन्दू ढांचे या निर्माण को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा. 1940 के दशक से पहले, मस्जिद को मस्जिद-इ-जन्मस्थान (हिन्दी: मस्जिद ए जन्मस्थान,उर्दू: مسجدِ جنمستھان, अनुवाद: "जन्मस्थान की मस्जिद") कहा जाता था, इस तरह इस स्थान को हिन्दू ईश्वर, भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है। पुजारियों से हिन्दू ढांचे को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा।
बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश, भारत के इस राज्य में 3 करोड़ 10 लाख मुस्लिम रहा करते हैं, की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक थी।
हालांकि आसपास के जिलों में और भी अनेक पुरानी मस्जिदें हैं, जिनमे शरीकी राजाओं द्वारा बनायी गयी हज़रत बल मस्जिद भी शामिल है, लेकिन विवादित स्थल के महत्व के कारण बाबरी मस्जिद सबसे बड़ी बन गयी. इसके आकार और प्रसिद्धि के बावजूद, जिले के मुस्लिम समुदाय द्वारा मस्जिद का उपयोग कम ही हुआ करता था और अदालतों में हिंदुओं द्वारा अनेक याचिकाओं के परिणामस्वरूप इस स्थल पर राम के हिन्दू भक्तों का प्रवेश होने लगा.।

मुस्लिम पक्ष - सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (सहमत) ने रिपोर्ट की आलोचना यह कहते हुए की कि "हर तरफ पशु हड्डियों के साथ ही साथ सुर्खी और चूना-गारा की मौजूदगी" जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मिला, ये सब मुसलमानों की उपस्थिति के लक्षण हैं "जो कि मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर के होने की बात को खारिज कर देती है" लेकिन 'खंबों की बुनियाद' के आधार पर रिपोर्ट कुछ और दावा करती है जो कि अपने निश्चयन में "स्पष्टतः धोखाधड़ी" है क्योंकि कोई खंबा नहीं मिला है,

अब मेरे भैया "पंकज निगम (तत्कालीन विहिप नगर प्रमुख) " जो की 1992 को कर सेवक थे की आंखो देखी - संक्षिप्त मे
"हम लोग 1992 को बाबरी विध्वंस के दिन ही अयोध्या पहुचे थे, किन्तु जब लोटे तब तक आधे से भी कम बचे थे, 6 दिसम्बर के बाद तिब्बत पुलिस ने सरयू नदी को लाशों से पाट दिया था, जिसमे सभी लाशे कर सेवको की थी, सभी बसे जो भी आजा रही थी सभी लाशों से भरी थी, रात के समय तिब्बत पुलिस फ़ाइरिंग करती थी जो भी उसके बीच मे आगया उसका राम नाम सत्य का मोका भी नही मिलता था, लाशे नदी मे बहा दी जाती थी।
हम लोगो ने गिरफदारी दे दी थी, और हमे 18 दिनो तक 1 जेल मे रखा गया, जहा उन 18 दिनो मे हमारे कई साथी भूख और बीमारी से मर गए, क्यू की जेल मे ना तो कुछ खाने को दिया जाता था, ना दिसम्बर की ठंड से बचाने की कोई व्यवस्था थी, 15 दिनो से भूखे होने के बाद भी हम 5 लोग जेल से भागने मे कामयाब हुये, और जंगलो से रास्ते पेडल दिल्ली पहुचे, वह पर हमारे कुछ अन्य लोग थे, उनकी मदद से नागदा पहुचे ।"

अब मुझे बताइये की हमारा राम मंदिर पहले तोड़ा गया उस समय लगभग 2 लाख लोग मारे गए फिर बाद मे हम पर ही जुल्म हुये और हमे ही दोष दिया जाता रहा?

विहिप ने मस्जिद तोड़ कर क्या गलत किया?

क्या कल से कोई चोर आपके घर मे घुसेगा तो आप उसे भगाएगे नही , चाहे इसके लिए आपको अपना या दूसरे किसी का भी खून ही क्यू न बहाना पड़े ?

फिर क्यू हमे हिन्दू आतंकवादी कहा जा रहा है, यह तो वैसा ही है, जैसा भगत सिंह को डाकू कहना ?

क्या जवाब है आपके पास ?

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